“ए मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुर्बानी”..आज उन वीर सपूतों का दिन है, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों को धूल चटा दिया था, और उन्हें भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. गांधी, नेहरू, भगत सिंह ये सभी नाम से हम वाकिफ है, लेकिन कुछ ऐसे नाम है, जो इतिहास के पन्नों में कहीं गुम से गए है लेकिन क्या आप जानते हैं सन् 1907 में ही भारत की एक महिला ने विदेशी धरती पर भारतीय ध्वज को फहरा दिया था. हां, उस झंडे की शक्ल इस झंडे से अलग थी, लेकिन मकसद एक ही था .
जी हां, हम बात कर रहे भीकाजी कामा के बारे में, जिन्होंने लंदन से लेकर जर्मनी और अमेरिका तक का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया था. उन्होंने विदेशी धरती पर बड़े ही गर्व से और पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना झंडा फहराया. जिसके बाद भीखाजी कामा ने एक स्पीच दी, जिसे सुनकर तालियों की गड़गड़ाहट से पूरी जगह गूंज उठी.भीकाजी कामा के द्वारा फहराए गए झंडे में इस्लाम, हिंदुत्व और बौद्ध मत को प्रदर्शित करने के लिए हरा, पीला और लाल रंग का इस्तेमाल किया गया था.साथ ही उसमें बीच में देवनागरी लिपि में ‘वंदे मातरम’ लिखा हुआ था.
भीकाजी कामा द्वारा पेरिस से प्रकाशित होने वाला ‘वन्देमातरम्’ पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ था.उन्होंने जिस झंडे को जर्मनी में लहराया था, उसमें देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को समेटने की कोशिश की गई थी।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भीखाजी कामा का जन्म ब्रिटिश कालीन बॉम्बे के एक पारसी परिवार में 24 सितंबर 1861 को हुआ था. इनके पिता का भीकाई सोराब जी पटेल था, जो उस समय के पारसी समुदाय के एक जाने-माने शख्सियत थे.
भीकाजी कामा के भीतर लोगों की मदद और सेवा करने की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी.साल 1896 में मुंबई में प्लेग फैलने के बाद भीकाजी ने इसके मरीजों की सेवा की थी. हालांकि बाद में वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थीं, लेकिन इलाज के बाद वह ठीक हो गई थीं.74 वर्ष की आयु में 13 अगस्त 1936 को यानी आजादी से कई साल पहले ही उनका निधन हो गया था.