सनातन परंपरा में जीवन से जुड़ी हर छोटी से छोटी बात को लेकर शुभता एवं अशुभता का ख्याल रखा गया है. यही कारण है कि किसी भी कार्य के लिए हमारे धर्म ग्रंथों, शास्त्रों आदि में तमाम तरह के नियम बताए गये हैं, जिनका संबंध हमारे सुख, शांति और समृद्धि से है. यदि बात करें किसी भी स्थान पर रहने की तो उसके लिए जहां ज्योतिष एवं वास्तु के अनुसार शुभ-अशुभ स्थान की विस्तृत व्याख्या की गई है, वहीं धर्म शास्त्र में भी किसी स्थान की परिस्थिति एवं लोगों का व्यवहार देखकर रहने या न रहने को लेकर तय करने को कहा गया है. आइए जानते है उन स्थानों के बारे में जहां पर हमें भूलकर भी नहीं रहना चाहिए –
धनिक: श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः। पञ्चयत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसं वसेत्।।
नीति के जानकार आचार्य चाणक्य का कहना है कि जिस देश या स्थान में धन-धान्य सम्पन्न व्यापारी, कर्मकाण्ड में निपुण व वेदों का ज्ञाता पुरोहित व ब्राह्मण, धर्मनिष्ठ और न्यायप्रिय राजा, स्वच्छ जल बहने वाली यानी पीने योग्य पानी देने वाली नदी या उसका कोई स्रोत न हो वहां पर हमें पल भी नहीं रुकना चाहिए. कहने का तात्पर्य यह कि हमें उस स्थान को अतिशीघ्र छोड़कर दूसरे स्थान पर चले जाना चाहिए.
आचार्य चाणक्य की नीति के पीछे अपने तर्क भी हैं क्योंकि जिस स्थान पर संपन्न लोग नहीं होंगे, वहां रोजी-रोजगार की संभावनाएं बहुत कम होगी. इसी तरह जहां पर ज्ञानी व्यक्ति नहीं होंगे, वहां आपसे संबंधित कोई गलत या सही निर्णय लेने वाला कोई नहीं मिलेगा. किसी भी राज्य के लिए कुशल, न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ राजा की बहुत जरूरत होती है, अन्यथा वहां पर निरंकुशता फैल जायेगी और कोई किसी को गलत-सही कार्य से रोकने वाला नहीं होगा. जीवन के लिए जल सबसे जरूरी चीज है, ऐसे में स्वच्छ जल वाली नदी या फिर कहें जल स्रोत वाले स्थान के न होने पर वहां रहने का कोई औचित्य नहीं बनता है. कुछ ऐसे ही स्वास्थ्य संबंधी समस्यों के निदान के लिए एक कुशल वैद्य या फिर आज की भाषा में कहें तो एक अच्छे डाक्टर की बहुत जरूरत होती है. ऐसे में अच्छे डॉक्टरों या वैद्य से विहीन स्थान पर रहने का भी कोई कारण नहीं बचता है.
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्ष्ण्यिं त्यागशीलता।
पंच यत्र न विद्यंते न कुर्यात्त्र संगतिम्।।
जिस स्थान पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, लज्जा, तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसी पांच जगहों का मोह नहीं करना चाहिए, अर्थात् उसका त्याग कर देना चाहिए.
यस्मिन देशे न सम्मानो न वृत्तिनं व बांधवा:
न च विद्यागमोप्यस्ति वासस्त्त्र न कारयेत्।।
जिस देश में सम्मान न हो, जहा पर कोई रोजी-रोजगार न मिले, जहां कोई अपना बंधु-बांधव न हो और जहां पर विद्या अध्ययन संभव न हो, ऐसे स्थान को तुरंत छोड़ देना चाहिए.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)