Friday, November 8, 2024
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किस्सा : दिलीप कुमार का एक्टर बनने का नहीं था कोई इरादा, पर मजबूरी ने बना दिया ट्रेजेडी किंग

फिल्म इंडस्ट्री में दो तारीख हमेशा याद रखी जाएंगी. एक 11 दिसंबर और दूसरी 7 जुलाई. 11 दिसंबर वो दिन था, जब दिलीप कुमार का जन्म हुआ और देश को मिला एक शानदार अभिनेता. 7 जुलाई, वो तारीख जिसे जब भी याद किया जाएगा तो आंखें जरूर नम होंगी. अभिनेता दिलीप कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे हैं. दिलीप कुमार ने 98 साल की उम्र में बुधवार को हिंदुजा अस्पताल में आखिरी सांस ली. दिलीप कुमार, ट्रेजेडी किंग थे और फिल्म इंडस्ट्री में भी उन्होंने एक ट्रेजेडी के कारण ही एंट्री मारी थी.

दरअसल, दिलीप कुमार एक्टर बनना ही नहीं चाहते थे. वह तो अपने पिता के बिजनेस में अपना हाथ बटाना चाहते थे. वो तो नियती का खेल था कि दिलीप कुमार के साथ कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें मजबूरन पढ़ाई और कामकाज छोड़कर फिल्मी दुनिया में आना पड़ा. दिलीप कुमार साहब तो अब हमारे बीच नहीं रहे हैं, लेकिन उनकी कहानियां और किस्से हमेशा हमारे साथ रहेंगे, तो चलिए आज दिलीप कुमार की याद में उनसे जुड़ा यही किस्सा शेयर करते हैं कि आखिर क्यों उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी और क्या वजह थी कि उन्होंने न चाहते हुए भी अभिनय की दुनिया में कदम रखा.

दिलीप कुमार एक ऐसे लड़के थे जो अपने पिता की हर बात तो मानते थे. अगर कहा जाए कि वह एक आदर्श बेटे थे, तो यह कहना गलत नहीं होगा. यह बात उस समय की है जब दिलीप कुमार ने 10वीं पास ही की थी. दिलीप कुमार लिटरेचर में अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहते थे, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि बेटा साइंस ले. दिलीप कुमार एक आदर्श बेटे थे, तो वह अपने पिता की बात को काटकर अपनी जिंद ऊपर कैसे रख सकते थे. इसलिए पिता की बात मानते हुए उन्होंने साइंस ले ली और विल्सन कॉलेज में एडमिशन ले लिया.

फुटबॉल खेलने के मिलते थे 15 रुपये

वैसे तो दिलीप कुमार पढ़ाई में टॉप स्टूडेंट तो नहीं थे, लेकिन एक ऐसे एवरेज स्टूडेंट थे, जिसे पढ़ाई का खूब शौक था. पढ़ाई के अलावा उन्हें फुटबॉल खेलना भी पसंद था. उन्हें जब भी समय मिलता तो वह अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेलने निकल जाया करते थे. अपने इस फुटबॉल का शौक उन्होंने कॉलेज में भी जारी रखा. वह प्रोफेशनल तौर पर भी फुटबॉल खेला करते थे. उस वक्त उन्हें खालसा कॉलेज की तरफ से फुटबॉल खेलने के लिए करीब 15 रुपये मिला करते थे. वह अपना गुजारा इसी में कर लिए करते थे.

जब कुछ ठीक चल ही रहा था, लेकिन दिलीप कुमार की जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि उन्हें पढ़ाई और फुटबॉल दोनों ही छोड़ने पड़े. दिलीप कुमार के पिता लाला गुलाम सरवर को बिजनेस में नुकसान होने लगा था. उनका फलों का बिजनेस था. उनके यहां से रोजाना चार-पांच गाड़िया भरकर फलों की सप्लाई होती थी. पर जब द्वितीय विश्व युद्ध हुआ तो उस वक्त ट्रांसपोर्ट की समस्या होने लगी थी. सारी गाड़ियों को युद्ध के लिए सामान लाने और ले जाने पर लगा दिया गया था. अब हफ्ते में केवल दो ही गाड़िया फलों की सप्लाई कर पा रही थीं. गोदाम फलों से भरा हुआ था, इसलिए उन्होंने जैम बनाना शुरू कर दिया, लेकिन आलम ये था कि फल तब भी बच जाते थे. फल गोदाम में पड़े पड़े सड़ रहे थे. ऐसे में घर की माली हालत खराब होने लगी.

फलों के बिजनेस में हुआ नुकसान तो छोड़ दी पढ़ाई

परिवार की माली हालत इतनी खराब हुई कि दिलीप कुमार को बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने नौकरी पकड़ी. उनकी पहली नौकरी थी मिलिट्री कॉन्ट्रैक्टर के क्लब में एक मैनेजर के तौर पर. यह नौकरी पुणे में थी इस नौकरी में उन्हें 36 रुपये प्रति महीना मिलते थे. इस दौरान उन्होंने दिखा कि सेना से जुड़े लोग वहां पर फलों की टोकरी लेकर आते हैं. उस मिलिट्री इलाके में कोई फलों की दुकान भी नहीं थी. ऐसे में दिलीप कुमार ने क्लब में फलों का स्टॉल खोलने की इजाजत ली और वहां एक छोटा सा स्टॉल खोल लिया. स्टॉल खुलने के पहले ही दिन दिलीप कुमार को 22 रुपये का फायदा हुआ.

इस क्लब हाउस में पार्टियां भी होती थीं. उन्होंने मौका देखकर वहां चाय, कॉपी और सैंडविच बेचना भी शुरू कर दिया. अब अपने इस काम से दिलीप कुमार को हर महीने लगभग हजार रुपये का फायदा होने लगा था. हालांकि, इस बीच एक ऑर्डिनेंस पास हुआ, जिसके तहत केवल सैन्य अधिकारियों को आर्मी क्लब में सामान बेचने की अनुमति थी. इस वजह से दिलीप कुमार को अपना काम बंद करना पड़ा. वो ईद का दिन था, जब दिलीप कुमार को अपनी दुकानें हमेशा के लिए बंद कर पुणे से वापस घर लौटना पड़ा. उनकी जेब में उस दिन हजार रुपये थे. उन पैसों से दिलीप कुमार ने अपने परिवार के साथ बहुत ही खुशी से ईद मनाई.

एक दिन जब दिलीप कुमार उदास बैठे थे, तब उनकी मुलाकात अपने पुराने दोस्त पृथ्वीराज कपूर से हुई. पृथ्वीराज कपूर उन दिनों फिल्मों में काम किया करते थे और खूब अच्छा कमा भी रहे थे. परिवार चलाने के लिए ऐसे में दिलीप कुमार ने पहली बार पिता और अपनी इच्छाओं के विरुध जाकर फिल्मी दुनिया में कदम रखा और वह बन गए ट्रेजेडी किंग.

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