Thursday, November 7, 2024
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कुंभ में कल्पवास के दौरान किन बातों का रखें ख्याल

कुंभ में कल्पवास का अर्थ है एक माह तक संगम के तट पर रहते हुए वेदाध्ययन और ध्यान पूजा करना। मान्यता के अनुसार कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का जरिया माना जाता है। संगम पर माघ के पूरे महीने निवास कर पुण्य फल प्राप्त करने की इस साधना को कल्पवास का नाम दिया गया है। कहते हैं कि कल्पवास करने वाले को इच्छित फल प्राप्त होने के साथ जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति भी मिलती है। ईश्वरीय भक्ति में लीन श्रद्धालु करीब माह भर तक साधनारत होकर कल्पवास करते हैं। कल्पवासी घर.गृहस्थी का मोह छोड़कर संगम तट पर आते हैं।

कल्पवास का महत्व

पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास की पूर्ण व्यवस्था का वर्णन किया है। उनके अनुसार कल्पवासी को इक्कीस नियमों का पालन करना चाहिए। ये नियम हैं सत्यवचन, अहिंसा, इन्द्रियों का शमन, सभी प्राणियों पर दयाभाव, ब्रह्मचर्य का पालन, व्यसनों का त्याग, सूर्योदय से पूर्व शैय्या.त्याग, नित्य तीन बार सुरसरि.स्न्नान, त्रिकालसंध्या, पितरों का पिण्डदान, यथा.शक्ति दान, अन्तर्मुखी जप, सत्संग, क्षेत्र संन्यास अर्थात संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, परनिन्दा त्याग, साधु सन्यासियों की सेवा, जप एवं संकीर्तन, एक समय भोजन, भूमि शयन, अग्नि सेवन न कराना। जिनमें से ब्रह्मचर्य, व्रत एवं उपवास, देव पूजन, सत्संग, दान का विशेष महत्व है।

1 कभी किसी काल में ऋषियों ने घोर तप किया था। तभी से तपोभूमि पर कुंभ और माघ माह में साधुओं सहित गृहस्थों के लिए कल्पवास की परंपरा चली आ रही है, जिसके माध्यम से व्यक्ति धर्म, अध्यात्म और खुद की आत्मा से जुड़ता है।

2 ऋषि और मुनियों का तो संपूर्ण वर्ष ही कल्पवास रहता है, लेकिन उन्होंने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा। उनके अनुसार इस दौरान गृहस्थों को अल्पकाल के लिए शिक्षा और दीक्षा दी जाती थी। इस शिक्षा और दीक्षा से ग्रहस्थों का जीवन सरल बनता है।

3 इस दौरान जो भी गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर आता है, वा ऋषियों की या खुद की बनाई पर्ण कुटी में ही वास करता है। इस दौरान दिन में एक ही बार भोजन किया जाता है तथा मानसिक रूप से धैर्य, अहिंसा और भक्तिभावपूर्ण रहा जाता है। इससे जीवन में अनुशासन और जिम्मेदारी का भाव विकसित होता है।

4 पद्म पुराण में इसका उल्लेख मिलता है कि संगम तट पर वास करने वाले को सदाचारी, शान्त मन वाला तथा जितेन्द्रिय होना चाहिए। इससे वह बहुत पुण्य के साथ ही प्रभु की कृपा भी प्राप्त करता है।

5 कल्पवास तपस्या है और इससे बहुत सी मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। ऐसी मान्यता है कि जो कल्पवास की प्रतिज्ञा करता है वह अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है लेकिन जो मोक्ष की अभिलाषा लेकर कल्पवास करता है उसे अवश्य मोक्ष मिलता है।

6 यहां झोपड़ियों में रहने वालों की दिनचर्या सुबह गंगा.स्नान के बाद संध्यावंदन से प्रारंभ होती है और देर रात तक प्रवचन और भजन.कीर्तन जैसे आध्यात्मिक कार्यों के साथ समाप्त होती है। इससे मन और चित्त निर्मल हो जाता है और व्यक्ति के सारे सांसारिक तनाव हट जाते हैं जिसके चलते वह ग्रहस्थी में नए उत्साह के साथ प्रवेश करता है।

ऋषियों और देवताओं का मिलता साथ

कहते हैं कि इस दौरान साधु संतों के साथ ही देवी और देवता भी स्नान करने धरती पर आते हैं। हिमालय की कई विभूतियां भी यहां उपस्थिति रहती हैं। ऐसे आध्यात्मिक माहौल में रहकर व्यक्ति खुद का धन्य पाता है। ब्रह्मलीन स्वामी सदानंद परमहंस कहते थे कि मेला से ज्यादा आध्यात्मिक महत्व उससे पूर्व कुम्भ के कल्पवास का होता है। कुम्भ के कल्पवास नगरी में पूरे देश के उच्च कोटि के साधक व सिद्ध साधना के लिए पहुँचते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण देवताओं के मनुष्य रूप में उपस्थिति होती है। कल्पवास में कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि जो साधक आपको साधारण दिख रहा है वह ऐसा ही है। हो सकता है कोई देवता छद्म वेश में साधना करने आया हो, स्वामी सदानंद जी स्वयं अध्यात्मिक स्तर पर परमहंस के पद पर सुशोभित थे। उसके बाद भी कल्पवास में साधना करने का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे।

कैसे करे आरंभ और क्या है लाभ

ऐसा माना जाता है कि कल्पवास का पालन करके अंतःकरण और हमारे शरीर दोनों का कायाकल्प हो सकता है। कल्पवास के पहले दिन तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन किया जाता है। साथ ही कल्पवास करने वाला अपने रहने के स्थान के पास जौ के बीज रोपता है। जब ये अवधि पूर्ण हो जाती है तो वे इस पौधे को अपने साथ ले जाते हैं जबकि तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है। पुराणों में बताया गया है कि देवता भी मनुष्य का दुर्लभ जन्म लेकर कल्पवास करें। महाभारत के एक प्रसंग में बताया गया है कि जो कोई एक महीना, इंद्रियों को वश में करके यहां पर स्नान, ध्यान और कल्पवास करता है। उसके लिए स्वर्ग में स्थान सुरक्षित हो जाता है।

हर वर्ष माघ माह में हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक आदि जगहों पर पवित्र नदी में स्नान करने का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस बार माघ माह में हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन हो रहा है। ऐसे में पवित्र नदी में स्नान का महत्व कई गुना है। पूस एवं माघ माह की पूर्णिमा को नदी किनारे कल्पवास करने का विधान भी है। कल्पवास का अर्थ होता है संगम के तट पर निवास कर वेदाध्ययनए व्रतए संत्संग और ध्यान करना। कल्पवास पौष माह के 11वें दिन से माघ माह के 12वें दिन तक रहता है। कुछ लोग माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं।प्राचीन पुराणों में भगवान नारायण को पाने का सुगम मार्ग माघ मास के पुण्य स्नान को बताया गया है। माघ मास में खिचड़ी, घृत, नमक, हल्दी, गुड़, तिल का दान करने से महाफल प्राप्त होता है। मत्स्य पुराण के एक कथन के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्मण को ब्रह्मावैवर्तपुराण का दान करता है, उसे ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है।

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