ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ायदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे
ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का
बिछड़ के डार से बन बन फिरा वो
हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी
बंध गई थी दिल में कुछ उम्मीद सी
ख़ैर तुम ने जो किया अच्छा किया
दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं
यही हालात इब्तिदा से रहे
लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे
छोड़ कर जिस को गए थे आप कोई और था
अब मैं कोई और हूं वापस तो आ कर देखिए
दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन
मैं कब से कितना हूं तन्हा तुझे पता भी नहीं
तिरा तो कोई ख़ुदा है मिरा ख़ुदा भी नहीं
मेरे अल्फ़ाज़ में जो रंग है वो उस का है
मेरे एहसास में जो है वो फ़ज़ा उस की है