ओलिंपिक खेलों में छोटे-बड़े कई देश ओलिंपिक में हिस्सा लेते हैं. कुछ देश अमेरिका जैसे बड़े देश होते हैं जो हर ओलिंपिक में कई मेडल अपने नाम करते हैं. वहीं कुछ ऐसे देश भी हैं जो या तो आज तक कोई मेडल नहीं जीत पाए हैं या फिर उनके नाम केवल एक या दो ही मेडल है. ऐसा ही एक देश हैं लक्जमबर्ग (Luxembourg) . वेस्टर्न यूरोप में बसा यह एक छोटा सा देश है जो फ्रांस, जर्मनी और बेल्जियम जैसे देशों से घिरा हुआ है. ओलिंपिक खेलों में यह देश केवल एक ही मेडल जीत पाया है.
इस देश ने अबतक 28 ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लिया है जिसमें वह केवल चार ही मेडल हासिल कर पाए हैं जिसमें तीन सिल्वर और एक गोल्ड मेडल शामिल हैं. यह गोल्ड जीतने वाले शख्स हैं जॉसी बारथेल (Josy Barthel). किस्से ओलिंपिक में हम आज आपको इस देश के इकलौते गोल्ड मेडलिस्ट की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने देश का नाम पहली बार दुनिया के सामने लाया और सम्मान दीजिए.
पहले ओलिंपिक में 10वें स्थान पर रहे थे जोसी
जोसी बारथेल ने 16 साल की उम्र में पहली बार 1500 मीटर में हिस्सा लिया था. उन्होंने कई सीनियर खिलाड़ियों को मात देकर जीत हासिल की थी. उनके अंदर एक खूबी थी कि वह आखिरी समय में इस तरह अपनी रफ्तार बढ़ाते थे कि जीत हासिल करके ही उनके कदम रुकते हैं. इसके बाद वह सेना से जुडे जहां उन्होंने असली ट्रेनिंग करना शुरू किया. दूसरे विश्व युद्ध के बाद उन्होंने पहली बार 1948 में ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लिया था. इस साल वह 1500 मीटर में 10वें स्थान पर रहे थे वहीं 800 मीटर के फाइनल में हिस्सा नहीं ले पाए थे.
गोल्ड जीतने पर नहीं बजा था लक्मजबर्ग
इसके बाद अगले ओलिंपिक खेलों में उन्होंने इतिहास रच दिया. उन्होंने 1500 मीटर में गोल्ड मेडल हासिल किया था. वह देश के पहले गोल्ड मेडलिस्ट बने. बेशक उन्हें देश में एक हीरो माना गया. जब वह पोडियम पर पहुंचे तो उनकी आंखों में आंसू थे. ओलिंपिक में हर गोल्ड मेडलिस्ट खिलाड़ी के देश के राष्ट्रगान की धुन बजाई जाती थी. हालांकि लक्जमबर्ग को तबतक कोई अच्छे से नहीं जानता था. यही वजह थी कि कोई उनके देश की धुन नहीं जानता था और उनके पोडियम पर आने पर एक आम ही धुन बजी थी.