हिंदी सिनेमा में 1970 से 1990 के दौरान बड़ी सफलता हासिल करने वाली ज्यादातर फ़िल्में मल्टीस्टारर हैं. सोलो हीरो वाली बहुत कम फ़िल्में मिलेंगी जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी के झंडे गाड़े हों. भले ही करियर के पहले फेज में की गई फिल्मों की वजह से ऋषि कपूर को कुछ लोग पेड़ों के नीच नाचने-गाने वाला एक्टर बताकर उन्हें खारिज करें, मगर इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि उस दौर में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के बाद वो इकलौते एक्टर नजर आते हैं जिनके खाते में कई सोलो हिट शामिल हैं. करियर के दूसरे फेज में तो उन्होंने फिल्मों में अपने उम्दा अभिनय से लोगों को हैरान ही कर दिया और अमिताभ बच्चन के स्तर पर बॉलीवुड में एकमात्र अभिनेता नजर आने लगे थे.
दादा पृथ्वीराज कपूर, पिता राज कपूर, चाचा शम्मी कपूर-शशि कपूर, भाई रणधीर कपूर की वजह से ऋषि कपूर को अभिनय और फ़िल्में विरासत में मिली. प्रेम नाथ और राजेन्द्र नाथ के रूप में ननिहाल पक्ष से भी सशक्त फ़िल्मी विरासत है. जाहिर सी बात है कि उन्हें दूसरे कई अभिनेताओं की तरह मौके की तलाश और संघर्ष नहीं करना पड़ा होगा. उनके लिए बहुत चीजें सुलभ थीं.
लेकिन चाचा और भाइयों (राजीव कपूर भी) के मुकाबले ऋषि कपूर की कामयाबी गवाह है कि मेहनत-लगन और एक्टिंग की वजह से उन्होंने पृथ्वीराज, राजकपूर, शशि कपूर की फ़िल्मी विरासत में खुद से बड़ा योगदान किया.
4 सितंबर 1952 में जन्में ऋषि कपूर का निधन पिछले साल 30 अप्रैल को मुंबई में हो गया था. उन्हें ल्यूकेमिया नाम की बीमारी थी. ये एक तरह का कैंसर हैं. पत्नी और बॉलीवुड एक्टर नीता सिंह कपूर ने काफी दिनों तक न्यूयॉर्क में उनका इलाज करवाया. बाद में ठीक होने की खबरों के साथ वो मुंबई वापस आ गए. फिर अचानक एकदिन कोरोना महामारी के बाद लगे देशव्यापी लॉकडाउन में उनकी तबियत खराब हुई. अस्पताल ले जाया गया, मगर इलाज के बावजूद वो बच नहीं सके.
ऋषि और नीता कपूर के दो बच्चे हैं. बेटा रणबीर कपूर बॉलीवुड की अगली कतार के सक्सेसफुल और हुनरमंद अभिनेताओं में शामिल हैं जबकि बेटी रिद्धिमा कपूर साहनी शादीशुदा जिंदगी जी रही हैं.
फ़िल्मी पर्दे पर ऋषि कपूर बेहद कम उम्र में नजर आ गए थे. वो 1955 में पिता राज कपूर की श्री 420 के गाने ‘प्यार हुआ इकरार हुआ, प्यार से फिर क्यों डरता है दिल…” दिखे थे. श्री 420 को दुनिया की क्लासिक फिल्मों में शुमार है. 1970 में मेरा नाम जोकर में भी चाइल्ड एक्टर के तौर पर राज कपूर के बचपन का रोल प्ले किया. बतौर हीरो 1973 में राज कपूर ने ऋषि को बॉबी के जरिए बतौर हीरो लॉन्च किया. ऋषि के अपोजिट डिम्पल कपाड़िया की भी ये डेब्यू फिल्म थी.
बॉबी कई लिहाज से एक क्रांतिकारी फिल्म की तरह है जिसने हिंदी सिनेमा में नई चीजों की शुरुआत की. फिल्मों का लोकप्रिय कथानक बदला, हीरो हीरोइन की परिभाषा बदली और ग्लैमर का एक नया दौर ही शुरू हुआ. टीनएज रोमांस पर आधारित बॉबी ने टिकट खिड़की पर सफलता के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए. सफलता ऐलान भी था कि सिनेमा पर राज करने के लिए कपूर परिवार की तीसरी पीढ़ी का एक सशक्त दावेदार मैदान में आ चुका है.
ऋषि को बॉबी में उनके काम के लिए फिल्म फेयर का बेस्ट एक्टर अवार्ड भी मिला जबकि ये फिल्म किसी और एक्टर को लेकर प्लान की गई थी. एक इंटरव्यू में खुद ऋषि कपूर ने बताया था- लोगों को गलतफहमी है कि बॉबी को मेरी लॉन्चिंग के लिए बनाया गया था. हकीकत यह है कि डैडी टीनएज लव स्टोरी पर राजेश खन्ना के साथ ये फिल्म बनाना चाहते थे ताकि मेरा नाम जोकर की नाकामयाबी से चढ़े कर्ज को उतारा जा सके. वे राजेश खन्ना को लेना चाहते थे. लेकिन उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे.
बॉबी की सफलता से रातोरात सुपरस्टार बने ऋषि कपूर ने एक पर एक हिट फ़िल्में दीं. इनमें कई सोलो और मल्टीस्टारर थीं जिनका सब्जेक्ट कॉमेडी और रोमांस था. ऋषि कपूर के खाते में एक्शन फ़िल्में लगभग ना के बराबर हैं. जो एक्शन ड्रामा थीं उनमें वो सपोर्टिंग हीरो के किरदार में ही हैं. बॉबी के एक साल बाद ऋषि कपूर की जहरीला इंसान रिलीज हुई थी. फिल्म औसत थी. इसके बाद 1975 में चार फ़िल्में आई- रफू चक्कर, जिंदा दिल, राजा और खेल खेल में. नीता कपूर के साथ रफू चक्कर हिट थी. 1976 में ऋषि कपूर ने पांच फ़िल्में कीं. इसमें लैला मजनू, बॉबी के बाद बेहद कामयाब फिल्म साबित हुई.
एक एक्टर के तौर पर ऋषि कपूर लगातार रोमांटिक, घरेलू और हल्की फुल्की कॉमेडी करते रहे. कई फ़िल्में मल्टी स्टारर थीं और ज्यादातर सोलो. इस दौर की फिल्मों में अमर अकबर एंथनी, चला मुरारी हीरो बनने, नया दौर, पति पत्नी और वो, सरगम, झूठा कहीं का, दो प्रेमी, कर्ज, नसीब, प्रेम रोग, कूली, नौकर बीवी का, तवायफ, सागर, नगीना, नसीब अपना अपना, घर घर की कहानी, चांदनी, घराना, अमीरी गरीबी, शेषनाग, अजूबा, हीना, घर परिवार, दीवाना, रिश्ता हो तो ऐसा, बोल राधे बोल, दामिनी, इज्जत की रोटी और साजन का घर पहले दौर की उल्लेखनीय फिल्मों में शामिल हैं.
ऋषि कपूर ने पत्नी नीता सिंह कपूर के साथ शादी से पहले और शादी के बाद करीब आधा दर्जन से ज्यादा फ़िल्में कीं. दोनों ने प्रेम के बाद 1980 में विवाह किया था.
करियर के पहले दौर में 1994 तक ऋषि कपूर औसतन हर साल चार से पांच फ़िल्में करते रहे. लेकिन फिल्मों का सब्जेक्ट बदलने, शाहरुख खान-सलमान खान-आमिर खान जैसे नए सितारों के आने से उनकी रोमांटिक फिल्मों का असर कम होता गया. उनकी बढ़ती उम्र भी रोमांटिक फिल्मों के लिहाज से खराब साबित हुई. ऋषि ने एक्टर के तौर पर बने रहने की कोशिश की मगर करीब आधा दर्जन फिल्मों (इना मीना डीका, साजन की बाहों में, प्रेम ग्रन्थ, पहला पहला प्यार आदि) फिल्मों की नाकामयाबी ने उनके दरवाजे बंद कर दिए.
वक्त के साथ ऋषि संभल गए और खुद को चरित्र भूमिकाओं की ओर बढ़ा दिया. राजू चाचा, फ़ना, नमस्ते लंदन जैसी फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं करने लगे. एक्टिंग फ्रंट पर ऋषि कपूर के करियर का दूसरा फेज काफी अहम है. पहले फेज में वेरायटी नहीं थी जबकि दूसरे में उन्होंने हर तरह की भूमिकाएं कीं. कई निगेटिव किरदार तो जबरदस्त तरीके से सराहे गए. खासकर औरंगजेब, डीडे और अग्निपथ.
अग्निपथ के रउफ लाला के किरदार के लिए फिल्म फेयर का बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवार्ड भी मिला. दूसरे फेज में ऋषि कपूर भी अमिताभ बच्चन की तरह ही सक्रिय नजर आए और कई फिल्मों में मेन लीड हैं. दो दूनी चार, चिंटू जी, 102 नॉक आउट, राजमा चावल और पटेल की पंजाबी शादी जैसी फ़िल्में इसमें गिनी जा सकती हैं.
देश विदेश के दर्जनों प्रतिष्ठित पुरस्कारों को हासिल करने वाले ऋषि कपूर बहुत बिंदास और बेबाक एक्टर थे. बोलते वक्त किसी भी क्लास लगा देते थे. सोशल मीडिया पर खूब एक्टिव थे और कई बार यहां व्यक्त विचारों की वजह से सुर्ख़ियों में भी आए. सालभर पहले हरफनमौला कलाकार का हमसे दूर चले जाना खालीपन भी छोड़कर चला जाना है. उसकी भरपाई नहीं हो सकती.