Friday, November 22, 2024
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जब फिल्म ‘कोहिनूर’ के एक गाने में दिलीप कुमार ने खूब बजाया सितार, कट गईं उंगलियां, निकलने लगा था खून

ओ जाने वाले, हो सके तो लौट के आना… ये घाट, तू ये बाट कहीं भूल न जाना… आज पूरा देश गमगीन है. हर किसी की आंखें नम हैं. दिलीप कुमार का यूं चले जाना दिल पर एक भारी घाव देता है. उनके निधन पर मुकेश का यह गाना सिर्फ कानों में गूंज रहा है. नामी हस्तियों से लेकर आम जन तक हर किसी की जुबान पर आज सिर्फ एक ही नाम है- दिलीप कुमार (Dilip Kumar). दिलीप कुमार की आखिरी सांस के साथ ही एक युग का अंत हो गया. दिलीप कुमार की डायलॉग डिलीवरी और उनका संजीदा अंदाज, हमेशा ही लोगों को पसंद आया. दिलीप कुमार अपनी फिल्मों को रियलिस्टिक बनाने के लिए उसमें जान झोंक देते थे.

अपने अभिनय से सिनेमाघरों के बेजान पर्दों में जान फूंकने वाले बेमिसाल अदाकार दिलीप कुमार ने तमाम पीढ़ियों के लिए अभिनय का एक ऐसा उदाहरण सेट किया, जिसके जरिए उन्हें कुछ न कुछ इस मेथड एक्टर से सीखने को मिला. अपना हर किरदार दिलीप कुमार बहुत ही संजीदगी के साथ निभाते थे. आज दिलीप कुमार को याद करते हुए आपको बताएंगे कि वह फिल्मों में रियल दिखने के लिए कितनी मेहनत करते थे.

अपनी फिल्मों में नहीं पसंद थे बॉडी डबल

हम जब स्क्रीन के पर्दे पर कलाकारों को कोई स्टंट या कुछ अलग करते हुए देखते हैं, तो सबसे पहले दिमाग में एक ही खयाल आता है कि ये या तो बॉडी डबल ने किया होगा या किसी स्टंट मैन ने. पर दिलीप कुमार स्क्रीन पर कुछ भी फेक दिखने के खिलाफ रहे. कहा जाता है कि उन्होंने कभी भी अपने बॉडी डबल का इस्तेमाल फिल्मों में नहीं होने दिया. इससे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा भी है, जो फिल्म कोहिनूर के एक गाने से जुड़ा है.

यह बात 1959 की है, जब दिलीप कुमार की फिल्म कोहिनूर की शूटिंग चल रही थी. इस फिल्म में दिलीप कुमार के साथ मीना कुमारी भी थीं. फिल्म में एक गाना है- ‘मधुबन में राधिका’. इस गाने में दिलीप कुमार को पर्दे पर सितार बजाते हुए दिखाया जाना था. चूंकि, दिलीप कुमार को सितार बजाना नहीं आता था, तो फिल्म के निर्देशक एसयू सनी ने फैसला किया कि गाने के लिए दिलीप कुमार के बॉडी डबल का इस्तेमाल किया जाएगा. पर दिलीप कुमार इसके लिए नहीं माने. इसके बाद सनी ने फैसला किया कि दिलीप कुमार सिर्फ दिखावे के लिए अपनी उंगलियों को सितार पर बजाएंगे, ताकि दिखे कि वह बजा रहे हैं. हालांकि, दिलीप कुमार ने इसके लिए भी इनकार कर दिया.

संगीतकार नौशाद अली ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि सही मायनो में दिलीप कुमार को हम कलाकार कहेंगे. सिर्फ आंखों से बात कर लेना और चेहरे के भावों से जवाब दे देना, यह उनको बखूबी आता था. फिल्म कोहिनूर में हमने मधुबन में राधिका नाचे रे गाना रिकॉर्ड किया. इस गाने में सितार के सीन थे. तो दिलीप कुमार कहने लगे थे- अरे, यह तो बहुत मुश्किल है. सितार के लिए मैं हाथ का क्लोजअप कैसे दे पाऊंगा. मैंने उनसे कहा कि उस्ताद हलीम जाफर खान ने सितार बजाया है, हम सीन में उनका क्लोजअप दे देंगे.

इतना बजाया सितार की कट गई थीं उंगलियां

इस पर दिलीप कुमार बोले- अरे अरे, ऐसा नहीं होगा, फिर मेरी जरूरत क्या है. मैं खुद अपने हाथ का क्लोजअप दूंगा. इसके बाद उन्होंने 2 से 3 महीनों तक सितार सीखा. अच्छे से सितार बजाने की ट्रेनिंग ली. नौशाद साहब ने कहा कि जब यह सीन शूट होना था, तो मैं गया महबूब स्टूडिया. उस समय दिलीप कुमार खाना खा रहे थे. उन्होंने मुझसे भी खाना खाने के लिए कहा. तब मैंने देखा कि उनके हाथ पर टेप लगी हुई हैं. मैंने उनसे पूछा कि ये टेप क्यों लगी है. तो उन्होंने जवाब दिया कि अरे, साहब वो सितार वाले शॉट दे रहा था, तो सितार बजाते बजाते उंगलियां कट गईं मेरी. आपने क्या मुसीबत मेरे सिर डाल दी, खून निकलने लगा.

6 महीने तक किया सितार बजाने का अभ्यास

वहीं, दिलीप कुमार ने भी अपने एक इंटरव्यू में इस किस्से का जिक्र किया था. दिलीप कुमार ने कहा था- प्लेबैक वैसे तो कुछ मुश्किल नहीं होते. कोई दिक्कत नहीं होती इसमें. मधुमती में जो गाने थे वो आसान थे. देवदास में भी मितवा लागीरे ये कैसी अनबुज आग, ये भी आसान था. लेकिन कुछ गाने बड़े दिक्कत तलब होते हैं, वो रियाज मांगते हैं. एक गाना था कोहिनूर का जिसे नौशाद अली ने कंपोज किया था और शकील बदायुनी ने लिखा था. वह गाना था- मधुबन में राधिका नाचे रे. इस गाने में सितार का सीन था, जो बहुत ही मुश्किल था.

ट्रेजेडी किंग ने बताया था कि इस गाने के लिए बहुत पढ़ना और अभ्यास करना पड़ा. उन्होंने कहा था- शूटिंग शेड्यूल के शुरुआत में ही निर्देशक सनी इस फिल्म की शूटिंग करना चाहते थे, लेकिन मैंने उन्हें यह कहते हुए मना कर दिया कि थोड़े दिन रुक जाओ. आखिरी शेड्यूल में शूटिंग कर लेंगे और तब तक मैं सितार बजाने की प्रैक्टिस कर लूंगा. इसके बाद मैंने कई महीनों तक सितार सीखा, लेकिन सितार सीखना बहुत मश्किल है. इसके लिए आपको ध्यान, अनुशासन और बहुत ज्यादा अभ्यास की जरूरत पड़ती है. मधुबन में राधिका नाचे रे, वैसे तो बहुत मश्किल गाना था, सितार बजाने से मेरी उंगलियां कट गई थीं, लेकिन यह मेरे करियर का सबसे पसंदीदा गाना है.

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