उत्तर प्रदेश का बदायूं जिला तीन चीजों के लिए मशहूर है. पीर, पेड़े और कवि. 13वीं सदी के सूफी संत निजामुद्दीन औलिया का जन्म भी यहीं हुआ था. यहां मौजूद छोटी जियारत और बड़ी जियारत के नाम से जानी जाने वाली दरगाह दूर-दूर से हजारों लोगों को आकर्षित करती हैं. पीर और पेड़ों से इतर अगर कवियों की बात की जाए तो इस जिले ने इस्मत चुगताई, जीलानी बानो, दिलावर फिगार, आले अहमद सुरूर, अदा जाफरी, फानी बदायूंनी, बेखुद बदायूंनी और शकील बदायूंनी जैसे एक से एक नामी कवि और शायर देश को दिए.
यहां से निकले कवियों की लिस्ट बहुत लंबी है, लेकिन इन सभी में से एक कवि ऐसा भी रहा, जिसने अपने साहित्य के साथ-साथ हिंदी सिनेमा को बेहतरीन नगमों से सजाया. हम बात कर रहे हैं शकील बदायूंनी की, शकील बदायूंनी ने अपने फिल्मी करियर में एक से एक हिट गाने दिए, जिन्हें लोग आज भी बहुत ही चाव के साथ सुनते हैं.
कौन था वो शख्स जिसने शकील बदायूंनी को सुनाई खरी खोटी
शकील बदायूंनी के बेहतरीन गानों में चौदहवीं का चांद, प्यार किया तो डरना क्या, न जाओ सैंया छुड़ा के बैयां कसम तुम्हारी, हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं और सुहानी रात ढल चुकी जैसे न जाने कितने ही गाने हैं, जिन्हें जब भी सुना जाए, हमेशा मन को मोह लेते हैं. अपने गानों से शकील बदायूंनी ने खूब लोकप्रियता हासिल की. वह जहां भी जाते तालियों की गूंज हर कोने से सुनाई देने लगती थी. लेकिन एक बार शकील बदायूंनी के साथ कुछ ऐसा हुआ, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी.
शकील बदायूंनी की कविता और नगमों पर ताली बजाने वाली भीड़ में से एक शख्स ने भरी महफिल में गीतकार को खरी खोटी सुना दी थी. वह शख्स कौन था और उसके द्वारा खरी खोटी सुनाए जाने के बाद शकील बदायूंनी की क्या प्रतिक्रिया थी, आज उनकी जयंती के मौके पर आपको इसके बारे में बताएंगे. यह किस्सा एक बार अन्नू कपूर ने अपने एक शो में सुनाया था.
अन्नू कपूर, मशहूर शायर निदा फाजली के हवाले से बताते हैं कि ग्वालियर में एक मुशायरे का आयोजन हुआ था. इस कार्यक्रम में शकील बदायूंनी ने भी अपनी कुछ नगमों को पेश किया. इस मुशायरे में नागपुर के मिर्जा दाग के एक शिष्य और वरिष्ठ कवि हजरत नातिक गुलाम भी शिरकत करने पहुंचे थे. सभी लोगों ने उनका बहुत ही शानदार तरीके से स्वागत किया. इस बीच शकील बदायूंनी ने भी उनके स्वागत में उन्हीं का एक मशहूर शेर पढ़ दिया.
जानिए किस गाने को लेकर शकील बदायूंनी को पड़ी थी डांट
शकील के मुंह से अपना लिखा हुए शेर सुनते ही हजरत नातिक गुलाम भड़क उठे. उन्होंने शकील से कहा कि तुम्हारे पिता और चाचा शायर थे. तुम फिल्मी लाइन में जाते ही शायरी के नियम भूल गए. हजरत नातिक गुलाम ने यह बात सभी के सामने कही थी. सभी के सामने डांट पड़ता देख शकील शर्मसार हुए. फिर बाद में हंसी में बात को उड़ाते हुए हजरत नातिक गुलाम से कहा कि हो सकता है कि मुझसे कोई गलती हो गई हो. आप मुझे बता दें. मैं उसे दुरुस्त कर लूंगा. शकील की बात सुनकर नातिक ने उसने कहा कि अब कैसे सही करोगे, वो तो रिकॉर्ड हो चुका है और मैंने उसे रेडियो पर सुन भी लिया है.
अब यहां नातिक बात कर रहे थे शकील के मोस्ट फेमस गाने ‘चौदहवीं का चांद हो’ के बारे में. नातिक, शकील बदायूंनी से कहते हैं- गौर फरमाइये आपने क्या लिखा है- चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो… यहां पहली लाइन में एक शब्द कम है. शायरी का मीटर जो है वो यहां ठीक नहीं है. पहली लाइन में अगर ‘तुम’ शब्द जोड़ देते तो यह ठीक होता. ये कुछ ऐसे होता- तुम चौदहवीं का चांद हो या तुम आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो…
यह सुनकर शकील बदायूंनी, हजरत नातिक गुलाम को अपनी सफाई में यह बताना चाहते थे कि अक्सर संगीतकार धुन का मीटर ठीक करने के लिए गाने के शब्दों को घटा या बढ़ा देते हैं. पर वह डांट खाते रहे और उन्होंने अपनी सफाई में नातिक से कुछ नहीं कहा. अन्नू कपूर आगे बताते हैं कि शकील बदायूंनी इसलिए चुप रहे, क्योंकि नातिक का कोई फिल्मी बैकग्राउंड नहीं था. उनका मानना था कि फिल्म का गाना लिखना अपने आप में एक बहुत बड़ी कला है.