हर महिला के लिए मां बनना, उसके जीवन का सबसे अनूठा और महत्वपूर्ण अहसास होता है। अपने परिवार और बच्चे को लेकर उसके मन में हजारों सपने होते हैं। लेकिन कुछ महिलाएं चाहकर भी अपने इस सपने को पूरा नहीं कर पातीं, क्योंकि कुछ कारणों से उन्हें गर्भ नहीं ठहर पाता है और मिसकैरेज (Miscarriage) हो जाता है।
कुछ महिलाओं के साथ तो ऐसा बार-बार होता है।
मिसकैरेज के कारण (Causes of Miscarriage)
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. निकिता नेत्रान बताती हैं कि मिसकैरेज होने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे-गर्भ में पल रहे बच्चे में किसी विकृति की वजह से या मां में किसी शारीरिक कमी की वजह से। डॉक्टर केस-हिस्ट्री से और अल्ट्रासाउंड के द्वारा मिसकैरेज के कारणों का पता लगाते हैं।
फर्स्ट ट्राइमेस्टर मिसकैरेज
डॉक्टर की जांच और ट्रीटमेंट इस बात पर निर्भर करती है कि मिसकैरेज प्रेग्नेंसी की किस स्टेज में हुआ है? यूटेरस में बनने वाला भ्रूण अगर एब्नॉर्मल हो या उसमें कोई कमी हो तो इस तरह का भ्रूण ठीक से विकसित नहीं हो पाता और प्रेग्नेंसी के 6-7 हफ्ते में ही यानी पहली तिमाही में ही गर्भपात हो जाता है। ऐसी स्थिति में पैरेंट्स की कैरियोटाइप जेनेटिक जांच की जाती है। यह देखा जाता है कि उनके क्रोमोस़ोम या डीएनए में कोई कमी तो नहीं है। फर्स्ट ट्राईमेस्टर में मिसकैरेज के और भी कारण हैं जैसे, मां का ब्लड ग्रुप आरएच नेगेटिव और पिता का पॉजिटिव होना। महिला-पुरुष दोनों की देर से शादी होना, अनहेल्दी लाइफस्टाइल और अनहेल्दी फूड हैबिट्स, एल्कोहल, तंबाकू, ड्रग्स, स्मोकिंग का सेवन करना। मोटापा, थाइरॉयड, जेस्टेशनल डायबिटीज मेलाइटस, पीसीओडी, ओबेसिटी जैसी क्रोनिक डिजीज होना इसके अन्य कारण हो सकते हैं।
सेकेंड ट्राइमेस्टर मिसकैरेज
प्रेग्नेंसी के 12-26 सप्ताह के बीच बार-बार होने वाले गर्भपात की मूल वजह मां के यूटेरस में कमी होना हो सकता है।
सेप्टेट यूटेरस: कई महिलाओं के यूटेरस के बीचों-बीच झिल्लीनुमा दीवार होती है, जिसे सेप्टम मेंब्रेन कहते हैं। यह टिश्यू का एक मस्कुलर बैंड होता है, जिससे यूटेरस का आकार छोटा हो जाता है। इस सेप्टम मेंब्रेन में ब्लड सप्लाई बहुत कम होती है। समस्या तब आती है, जब भ्रूण इस सेप्टम मेंब्रेन पर चिपक जाता है। प्रॉपर ब्लड सप्लाई ना हो पाने के कारण भ्रूण को पोषण नहीं मिल पाता। भ्रूण ठीक से विकसित नहीं हो पाता और गर्भपात हो जाता है। ऐसा होने पर महिला को इसका उपचार अगली प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले करा लेना चाहिए। उपचार में सेप्टम मेंब्रेन को लेप्रोस्कोपी ऑपरेशन के द्वारा हटा दिया जाता है।
सर्वाइकल इनकॉम्पिटेंस: नॉर्मल कंडीशन में गर्भाशय का मुंह (यूटेरस ओपनिंग) यानी सर्विक्स, केवल डिलीवरी के समय ही खुलना चाहिए। लेकिन सर्वाइकल इनकॉम्पिटेंस की कंडीशन में यह समय से पहले खुल जाता है। जिससे गर्भपात होने या समय से पहले अपरिपक्व बच्चे के जन्म का रिस्क रहता है। सर्वाइकल इनकॉम्पिटेंस कई कारणों से हो सकती हैं, जैसे कैंसर सर्जरी हुई हो, पहले एबॉर्शन या मिसकैरेज हुआ हो या शुरुआत से ही ऐसी समस्या हो।
इसके नॉर्मल ट्रीटमेंट में सर्विक्स को वेजाइना एरिया के साथ स्टिच कर दिया जाता है। लेकिन कुछ मामलों में यह कामयाब नहीं होता और गर्भपात की संभावना बनी रहती है। ऐसे में सर्वाइकल इनकॉम्पिटेंस का ट्रीटमेंट, लेप्रोस्कोपिक इनसेरक्लेज या टोटल एब्डोमिनल सेरक्लेज से भी किया जाता है, जो नई तकनीक है और काफी इफेक्टिव है। इसमें लेप्रोस्कोपी सर्जरी से सर्विक्स के ऊपरी भाग में स्टिच लगाकर यूटेरस का मुंह बंद किया जाता है, जिससे गर्भपात नहीं होता।
मिसकैरेज के अन्य कारण: यूटेरस में रसौली या फाइब्रॉयड, एंडोमेट्रिओसिस होने से भी मिसकैरेज की संभावना रहती है। इसमें यूटेरस के अंदर की लेयर मसल्स में दब जाती है और यूटेरस को कमजोर कर देती है। इससे 14-15 सप्ताह में (यानी तीन से साढ़े तीन महीने) में गर्भपात हो जाता है। इसे लेप्रोस्कोपी सर्जरी से ठीक किया जाता है। इलाज के तकरीबन 2 महीने बाद ही प्रेग्नेंसी प्लान करनी चाहिए ताकि यूटेरस में लगे टांके ठीक हो सकें और किसी तरह की समस्या ना हो।
नॉर्मल कंडीशंस में बीस-बाइस सप्ताह की प्रेग्नेंसी के बाद मिसकैरेज की संभावना बहुत कम हो जाती है। इसलिए प्रेग्नेंसी के शुरुआती सप्ताहों में ही इससे बचने के लिए ज्यादा केयर की जरूरत होती है।
इन बातों का रखें ध्यान
-बार-बार होने वाले मिसकैरेज से बचाव के लिए कुछ उपायों पर अमल किया जा सकता है। इसके लिए महिला को प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले ही कॉन्शस रहने की जरूरत है। इसके साथ ही यहां दिए जा रहे सजेशंस को भी फॉलो करना चाहिए-
-लेट मैरिज और लेट फैमिली प्लानिंग अवॉयड करें।
-शादी से पहले स्त्री-पुरुष दोनों को ब्लड ग्रुप जरूर चेक कराना चाहिए।
-अगर किसी महिला को एक बार मिसकैरेज हो जाए, तो अच्छा हो प्रॉपर ट्रीटमेंट के बाद ही दोबारा प्रेग्नेंसी प्लान करें।
-प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले महिलाओं को हेल्दी लाइफस्टाइल अपनानी चाहिए। रेग्युलर वर्कआउट करना चाहिए ताकि एक्टिव रहें और वजन कंट्रोल में रहे। प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली परेशानियों से बचने के लिए फिटनेस पर पूरा ध्यान रखना जरूरी है।
-न्यूट्रिशस और बैलेंस हेल्दी डाइट लेनी चाहिए।
-प्रेग्नेंसी के दौरान स्ट्रेस, टेंशन से बचना चाहिए। रिलैक्स रहने के लिए मेडिटेशन, म्यूजिक सुनना, बुक्स पढ़ना, क्रिएटिव वर्क करना, दोस्तों या परिवार के साथ समय बिताना चाहिए।
-एल्कोहल, स्मोकिंग, कैफीन जैसी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।