ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार यानी एडीएचडी एक आम विकार है, लेकिन यह मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक ऐसी स्थिति है, जिसे अक्सर सही से नहीं समझा जाता। दरअसल, ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत, अतिसक्रियता और आवेग समेत व्यवहार संबंधी ऐसे कई लक्षण हैं, जिन्हें कभी न कभी हर कोई अवश्य महसूस करता है, लेकिन एडीएचडी से पीड़ित लोग स्कूल में, घर में और हर अन्य स्थान पर व्यवहार संबंधी इस प्रकार की समस्या का अक्सर सामना करते हैं, जिससे रोजाना के उनके जीवन पर असर पड़ता है।
एडीएचडी से अमेरिका में 60 लाख से अधिक बच्चे पीड़ित हैं। जो लोग एडीएचडी से पीड़ित होते हैं, उनमें 12 वर्ष की आयु तक इसके लक्षण दिखने लगते हैं और ये किशोरावस्था या वयस्क होने के शुरुआती वर्षों तक बने रहते हैं। लोगों में जीवनभर भी यह समस्या बनी रह सकती है।
अमेरिका में हर कक्षा में औसतन दो छात्र इस समस्या से पीड़ित हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एडीएचडी किसी व्यक्ति के व्यवहार को परिभाषित करने का सिर्फ एक तरीका है। इसका इस बात से कोई संबंध नहीं है कि आप कितने बुद्धिमान हैं या क्या आप दोस्त बना सकते हैं या क्या आप खेल, संगीत या कला में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं।
इस बारे में किसी को जानकारी नहीं है कि एडीएचडी का वास्तविक कारण क्या है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका कारण जीन हो सकते हैं, लेकिन ऐसा क्यों है, इसके बारे में किसी को पता नहीं है।
वैज्ञानिकों का वर्षों के अनुसंधान के निष्कर्षों के आधार पर कहना है कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि किसी व्यक्ति का दिमाग कैसे काम करता है और उनके आस-पास माहौल कैसा है।
वैज्ञानिकों का इस संबंध में वर्षों तक किए गए अनुसंधान के निष्कर्षों के आधार पर कहना है कि एडीएचडी इस बात पर निर्भर करता है कि किसी व्यक्ति का दिमाग किस तरह काम करता है और उनके आस-पास माहौल कैसा है।
अनुसंधान ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि एडीएचडी का कारण क्या है। उदाहरण के तौर पर, अनुसंधान के निष्कर्ष इन आम सिद्धांतों का समर्थन नहीं करते कि अत्यधिक चीनी खाने या इलेक्ट्रानिक उपकरणों पर अत्यधिक समय व्यतीत करने के कारण 1990 के बाद से एडीएचडी के मामले बढ़े हैं। वर्ष 1990 में दो प्रतिशत से भी कम अमेरिकी बच्चे इस समस्या से पीड़ित थे, लेकिन आज इनकी संख्या कम से कम 9.4 प्रतिशत है।
मैंने जो भी अनुसंधान किया है और अन्य निष्कर्षों की जो समीक्षा की है, उनके आधार पर मुझे लगता है कि इस संख्या के बढ़ने का कारण एडीएचडी को लेकर लोगों के बीच जागरुकता पैदा होना और इसके मामलों की बेहतर पहचान किया जाना है।
अभिभावकों के अपने बच्चों से बात करने के तरीके की वजह से एडीएचडी नहीं होता, लेकिन जो बच्चे या किशोर इससे पीड़ित हैं, उनके साथ माता-पिता को अधिक समय व्यतीत करने की आवश्यकता होती है।
अधिकतर मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि एडीएचडी ऐसा विकार है,जिसे उसी तरह बदला नहीं जा सकता, जैसे आंखों का रंग या लंबाई बदली नहीं जा सकती। जिस प्रकार चिकित्सक आपके पैरों की लंबाई को दोगुना नहीं कर सकते, उसी प्रकार वे एडीएचडी का उपचार नहीं कर सकते।
यदि किसी व्यक्ति को ऊंचे स्थान पर रखी वस्तु तक पहुंचने में दिक्कत है, जो क्या आप उससे कहेंगे कि उसे लंबा होने की आवश्यकता है? निस्संदेह नहीं, लेकिन आप उसे सीढ़ी का इस्तेमाल करने की सलाह दे सकते हैं। अच्छा समाचार यह है कि एडीएचडी से पीड़ित लोग इस समस्या से जुड़ी चुनौतियों से पार पा सकते हैं। साक्ष्य इसके उपचार के लिए दो तरीकों का समर्थन करते हैं।
व्यवहार संबंधी उपचार पद्धति अक्सर माता-पिता और अध्यापक मिलकर लागू कर सकते हैं। इसके तहत वे दैनिक आधार पर स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में फीडबैक दे सकते हैं। इसके अलावा जब एडीएचडी से पीड़ित लोग अपने लक्ष्यों को पूरा करते हैं, तो वे उन्हें पुरस्कार भी दे सकते हैं।
उपचार के सबसे प्रभावी तरीकों में माता-पिता को यह सिखाना शामिल है कि जब उनके बच्चे स्कूल का अपना काम और घर का काम करते हैं और आम तौर पर अच्छा व्यवहार करते हैं तो उन पर अधिक ध्यान कैसे दें। माता-पिता और शिक्षक बच्चों को सुधारने और दंड देने के बजाय उनमें अच्छी बातों पर ध्यान केंद्रित करें।
एडीएचडी से पीड़ित बच्चे जब बड़े होते हैं, तो अपने लिए स्वयं लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं और अपने दिन को सुव्यवस्थित रखने के तरीकों पर कड़ी मेहनत कर सकते हैं। इसके अलावा, एडरआल और रीटालिन जैसी दवाइयां भी एडीएचडी से पीड़ित लोगों को बेहतर तरीके से ध्यान केंद्रित में मदद कर सकती हैं, लेकिन कुछ लोग इन दवाओं के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव के कारण उन्हें ले नहीं सकते। इसके अलावा कुछ ऐसी दवाइयां भी उपलब्ध हैं, जिनके दुष्प्रभाव कम हैं, लेकिन वे आम तौर पर कम प्रभावशाली हैं।
कई वर्षों के अनुसंधान के बाद मुझे विश्वास है कि एडीएचडी से पीड़ित लोग जीवन में दीर्घकाल में सफल हो सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें, उनके परिवार और उनके शिक्षकों को कौशल विकसित करने और रोजमर्रा की जिंदगी को जटिल बनाने वाली व्यवहार संबंधी प्रणाली को बदलने के लिए कड़ी मेहनत करती होगी।