दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में शामिल दक्षिण कोरिया का सुनेयुंग एग्जाम एक बार फिर चर्चा में है. नवंबर के दूसरे पखवाड़े में होने वाली इस परीक्षा में हर साल 5 लाख लोग बैठते हैं. परीक्षा 9 घंटे चलती है. इस परीक्षा में पास होना बेहतर भविष्य की गारंटीमाना जाता है.
क्या है सुनेयुंग एग्जाम, इसे इतना कठिन एग्जाम क्यों जाना जाता है, जानिए इन सवालों के जवाब
क्या है सुनेयुंग एग्जाम?
दक्षिण कोरिया में यह परीक्षा यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए आयोजित की जाती है. हायर एजुकेशन की इच्छा रखने वाले हर स्टूडेंट का सपना इस परीक्षा को पास करना होता है. बेहद कठिन परीक्षा होने के कारण पेरेंट्स इस पर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है, हर साल लाखों बच्चे इस परीक्षा में बैठते हैं. परीक्षा काफी कठिन होने के कारण बच्चों में डिप्रेशन बढ़ रहा है. इसलिए परीक्षा को सरल बनाए जाने की जरूरत है.
मंदिर में बच्चे के पास होने की दुआ करते हैं पेरेंट्स
हर साल नवंबर में परीक्षा के पहले सियोल के पास स्थित जॉगयेशा मंदिर में पेरेंट्स की भीड़ लगती है. ये पेरेंट्स ईश्वर से अपने बच्चों के पास होने की दुआ करते हैं. उनका कहना है, यह परीक्षा बच्चे के बेहतर भविष्य के लिहाज से जरूरी है, लेकिन इसका जरूरत से ज्यादा कठिन होना बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है.
परीक्षा में पास न होने पर कई स्टूडेंट्स आत्महत्या कर लेते हैं
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस एग्जाम के कारण यहां के युवाओं में डिप्रेशन के मामले बढ़ रहे हैं. विकसित देशों की बात करें तो दक्षिण कोरिया के युवाओं में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है. यहां 24 साल तक के युवाओं में आत्महत्या की दर पिछले पांच सालों के दौरान 10 फीसदी बढ़ गई है.
परीक्षा के लिए बदल जाता है ट्रेन से लेकर फ्लाइट तक का शेड्यूल
दक्षिण कोरिया में इस परीक्षा को कितना अहम माना जाता है, यह इससे समझा जा सकता है कि एग्जाम के लिए ट्रेन से लेकर फ्लाइट तक का शेड्यूल बदल जाता है. सभी सरकारी दफ्तर, बैंक और स्टॉक मार्केट के खुलने का समय बदल जाता है. जो बच्चे अपने एग्जाम सेंटर तक नहीं पहुंच सकते, उन्हें वहां तक पहुंचाने के लिए पुलिस की ओर से गाड़ियां उपलब्ध कराई जाती हैं.
परीक्षा से जुड़े विवाद भी कम नहीं
इस परीक्षा के कारण स्टूडेंट्स में होने वाले तनाव और डिप्रेशन ही नहीं, इसके अलावा भी कई ऐसी वजह हैं जिसका कनेक्शन इस परीक्षा से है. पेरेंट्स का कहना है, इस परीक्षा में पास होने वाले को विजेता कहा जाता है, लेकिन जो परीक्षा में फेल हो जाते हैं उन्हें जीवनभर के लिए फिसड्डी समझा जाता है. उन बच्चों को इसी नजरिए से देखा जाता है. आलोचकों का कहना है, इस परीक्षा में बदलाव की जरूरत है क्योंकि यह रटने वाले सिस्टम पर आधारित है.