भारत दुनिया का वो देश जहां पर पानी की कमी सबसे बड़ी चिंता का विषय है. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की 50 फीसदी आबादी को सुरक्षित पानी नहीं मिल पाता है. यहां तक कि बाकी बची हुई 50 फीसदी आबादी के लिए भी पानी का संकट बढ़ता जा रहा है. अमेरिका स्थित वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (WRI) ने भारत को दुनिया के उन 13 देशों की लिस्ट में रखा है जहां पर पानी का संकट विकराल है. अब जरा सोचिए कि जिस देश में पानी का इतना संकट हो वहां पर सिर्फ एक जींस को तैयार करने में ही हजारों लीटर पानी खर्च कर दिए जाए तो. आपको यकीन नहीं होगा मगर यही सच है.
एक जींस में बर्बाद होता 500 गैलन पानी
साल 2019 में आई डब्ल्यूआरआई की रिपोर्ट में भारत को विश्व स्तर पर सबसे अधिक पानी की कमी वाले देशों की सूची में 13वें स्थान पर रखा गया. इस रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय कपड़ा उद्योग ही अकेले रोजाना 425,000,000 गैलन पानी का उपयोग करता है और सिर्फ एक जोड़ी जींस को बनाने में ही करीब 500 गैलन यानी 1000 लीटर से ज्यादा पानी का प्रयोग हो जाता है.
रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया भर में, साल 2050 तक, कपड़ा उद्योग में जल प्रदूषण के दोगुना होने की उम्मीद है, जो इसे धरती पर दूसरा सबसे बड़ा प्रदूषित उद्योग बन गया है. चिंता का एक प्रमुख कारण, पानी का अत्यधिक उपयोग और अत्यधिक जल प्रदूषण है, जो सबसे ज्यादा रंगाई और प्रोसेसिंग की वजह से होता है.
क्यों जींस को बनाने में बर्बाद होता है पानी
वॉटर रिर्सोसेज के खतरनाक प्रदूषण ने वेस्ट वॉटर के ट्रीटमेंट और निर्वहन के लिए नियमों की एक लंबी सीरिज को जन्म दिया है. कॉमन एफफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) और कुछ मामलों में जेडएलडी सिस्टम की स्थापना भारत में अब एक नियम बन गया है.
रिसर्चर्स का कहना है कि एक जोड़ी जींस को तैयार करने में 7600 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है. इसी बात को देखते हुए अब दुनिया भर के इकोलॉजिस्ट्स परेशान हो गए हैं. ऐसे समय में जब ताजे पानी का संकट दुनिया में बढ़ता जा रहा है तो जींस का उत्पादन चिंताओं को दोगुना करने वाला है. सेंट्रल ग्राउंडवॉटर सर्वे की तरफ से बताया गया है कि भारत में भूजल में औसतन 52 फीसदी की गिरावट आई है और सभी राज्यों में हालात खराब हैं.
किस प्रक्रिया के बाद तैयार होती है जींस
जींस को तैयार करने में कई बार धोना पड़ता है और इसे तैयार करने में कई प्रकार के खतरनाक केमिकल्स का भी प्रयोग होता है. कॉटन थ्रेड से निकले यार्न को नीले रंग में रंगा जाता है.
इसके बाद इसे स्टार्च में डुबोया जाता है ताकि ये कड़क रहे. इसके बाद इसे सफेद यार्न से सिला जाता है. इस कपड़े को डेनिम कहते हैं. जींस को फेडेड इफेक्ट देने के लिए इसे ब्लीच किया जाता है और फिर से धोया जाता है. एसिड और केमिकल्स की मदद से रंगों को हल्का किया जाता है.
प्यूमिक स्टोन्स को कपड़े पर रगड़ा जाता है. केमिकल्स, एसिड और पत्थर से रगड़ने के बाद बार-बार इसे धोया जाता है. इसके बाद आपकी जींस पहनने के योग्य होती है. हालांकि देश के कई ब्रांड्स अब जागरूक हुए हैं और उन्होंने बिजली,पानी के प्रयोग को कम से कम किया है. इसके साथ ही कई ब्रांड्स अब केमिकल के प्रयोग से भी बचने लगे हैं.