Sunday, November 24, 2024
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मेंस्ट्रुअल हेल्थ पर खुलकर बात न करने की वजह से हर साल होती है लाखों महिलाओं की मौत

आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनियाभर में हर साल करीब 8 लाख महिलाओं की मृत्यु पीरियड्स की वजह से होती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आज भी करीब 62 फीसदी महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़ा आदि अन्य चीजों को इस्तेमाल करती हैं.​तमाम महिलाएं ऐसी हैं जो पैड्स इस्तेमाल तो करती हैं, लेकिन उन्हें इसके बारे में सही जानकारी नहीं है. पीरियड्स के दौरान हाइजीन मेंटेन न करने की वजह से महिलाओं को जो संक्रमण होता है, वो इतना खतरनाक है कि महिलाओं को मौत की दहलीज तक पहुंचा देता है.

आज के युग में हम चाहे खुद को कितना ही मॉडर्न दिखा दें, लेकिन सच यही है कि मेंस्ट्रुअल हेल्थ (Menstrual Health) आज भी एक ऐसा विषय है, जिस पर लोग खुलकर बात करना पसंद नहीं करते. हर माह पीरियड्स की कष्टकारी प्रक्रिया को गंभीरता से लिया ही नहीं जाता. भारत के छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में तो आज भी मासिक धर्म को लेकर तमाम भ्रांन्तियां फैली हुई हैं, लेकिन उनको खत्म करने का प्रयास नहीं किया जाता. शायद इसीलिए सर्वाइकल कैंसर के मरीजों में करीब एक चौथाई लोग भारत के हैं. आखिर कब तक इस मुद्दे पर हम चुप्पी साधकर रखेंगे ?

हाइजीन मेंटेन करने की जानकारी ही नहीं

टीवी पर जब सैनिटरी पैड का कोई विज्ञापन आता है तो उसमें ऐसे दिखाया जाता है कि मानो पैड लगाते ही महिलाओं की सारी परेशानियां छूमंतर हो जाएंगी. साथ ही दाग को छिपाने की बात कहते हुए पीरियड्स को सीक्रेट टॉक का हिस्सा बताने का प्रयास किया जाता है. महिलाएं टीवी के एड देखकर प्रभावित होती हैं. पीरियड्स के दौरान वे लोगों के बीच उठने बैठने और चलने में भी संकोच महसूस करती हैं. इसके पीछे एक ही डर होता है कि कहीं कपड़ों पर दाग न आ जाए. वरना लोग उन्हें गलत तरह से देखेंगे. विज्ञापन को देखकर महिलाएं पैड को घंटों इस्तेमाल करती हैं. उन्हें विज्ञापन में ये नहीं बताया जाता है कि पैड कितने समय के लिए इस्तेमाल करना है. लिहाजा पीरियड्स के दौरान हाइजीन मेंटेन करने की जानकारी महिलाओं को न तो विज्ञापन से मिलती है और न ही घर से. जागरुकता के अभाव में महिलाएं गलतियां करती हैं और संक्रमण की शिकार हो जाती हैं. यदि इस मुद्दे पर खुलकर बात की जाती तो महिलाएं इस दौरान इतनी घबराई नजर नहीं आतीं.

इसलिए होता है संक्रमण

टाटा मेमोरियल सेंटर और राष्ट्रीय प्रजनन स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान की स्टडी के मुताबिक भार में आज भी ज्यादातर महिलाएं पैड्स की जगह कपड़े का इस्तेमाल करती हैं. हैरानी की बात ये है कि तमाम महिलाएं इस्तेमाल करने से पहले न तो कपड़े को धोती हैं और न ही धूप में सुखाती हैं. इसके कारण कपड़े में बैक्टीरिया पैदा होते हैं, जो संक्रमण की वजह बन जाते हैं. वहीं एक ही पैड को लंबे समय तक इस्तेमाल करने से सर्वाइकल कैंसर का​ रिस्क बढ़ जाता है.

कितनी देर में बदलना चाहिए पैड

तमाम महिलाओं का मानना है कि उन्हें ब्लीडिंग ज्यादा नहीं होती, इसलिए वे एक पैड को 7 से 8 घंटे लगाकर रखती हैं. लेकिन वास्तव में फ्लो हैवी हो या लाइट, लेकिन पैड्स को 3 से 4 घंटे में हर हाल में बदल लेना चाहिए. लंबे समय तक सोखने की क्षमता वाले पैड में डाइऑक्सिन और सुपर-अब्सॉर्बेंट पॉलिमर यूज किया जाता है, जो सर्वाइकल कैंसर के रिस्क को बढ़ाता है. इसके अलावा तमाम स्टडीज ये भी बताती हैं कि पैड्स का लंबे समय तक इस्तेमाल महिलाओं में बांझपन, थायरॉयड की खराब, एलर्जी और एंडोमेट्रियम से संबंधित बीमारियों का कारण भी बन सकता है. इसलिए अगर आप भी पीरियड्स के दौरान पैड्स यूज करती हैं, तो इसको लेकर सचेत रहें.

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