ऑस्ट्रेलियन ओलिंपिक इतिहास में शर्ली स्ट्रिकलैंड (Shirley Strickland) को एक बड़ा चैंपियन माना जाता है. वह ऑस्ट्रेलिया (Australia) में सबसे ज्यादा ओलिंपिक मेडल जीतने वाली महिला एथलीट हैं. किस्से ओलिंपिक में आज हम आपको उन्हीं की कहानी बताने वाले है. फिजिक्स में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने वह सपना पूरा किया जो उनके पिता ने अधूरा छोड़ दिया था.
स्ट्रिकलैंड के चार भाई थे. वह वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुई और वहीं बड़ी हुई थे. उनके पिता वैसे गोल्डफील्ड पर काम करते थे लेकिन इसके बावजूद वह भी एथलीट थे. उनके पास 1900 के पेरिस ओलिंपिक में हिस्सा लेने का मौका था लेकिन पैसों की कमी की वजह से वह वहां जा नहीं पाए थे. हालांकि लोगों का मानना था कि वह उस ओलिंपिक में ऑस्ट्रेलिया का प्रतिनिधित्व करने वाले एथलीट से भी बेहतर थे. बेशक पिता के यह गुण बेटी में भी आए.
पर्थ कॉलेज में की एथलेटिक्स की ट्रेनिंग
जिस समय दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ उस समय शर्ली को पर्थ टेक्निकल कॉलेज में पढ़ाने गई थी. ग्रेजुएशन के बाद वह सैनिकों को पढ़ाती थी. इसके बाद उन्होंने शर्ली को वहां ट्रेनिंग के लिए बुलाया. पर्थ कॉलेज में उन्हें ऑस्टिन रोबर्स्टन ने कोच किया. यहां उनके खेल में काफी सुधार हुआ. 1947 में वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया स्टेट टाइटल में उन्होंने 100 यार्ड, 440 यार्ड, 90 यार्ड हर्डल्स और शॉटपुट में गोल्ड जीता. 1948 में उन्हें लंदन ओलिंपिक के लिए ऑस्ट्रेलियन टीम में चुनी गई थीं. हालांकि इन ओलिंपिक खेलों में उन्हें केवल एक सिल्वर और तीन ब्रॉन्ज मेडल जीते.
इसके बाद उन्होंने हेलसिंकी ओलिंपिक में हिस्सा लिया और पहली बार गोल्ड जीता. यहां दो गोल्ड मेडल हासिल किए. उन्होंने 80 मीटर हर्डल में गोल्ड जीता और फिर उन्होंने देश के लिए 4×100 मीटर रिले में भी देश को गोल्ड दिलाया. वहीं 100 मीटर में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता था. अगले ओलिंपिक खेलों में उन्होंने 80 मीटर हर्डल में अपने खिताब का बचाव किया था.
बेच दिए थे अपने ओलिंपिक मेडल
ओलिंपिक से रिटायरमेंट के बाद वह एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़ गई थी. 1976 के ओलिंपिक में उन्होंने खिलाड़ियों को कोचिंग दी. वह ऑस्ट्रेलिया के डेमोक्रेट्स में भी लंबे साथ तक जुड़ी रहीं. 1971 में वह पहली बार चुनाव में लडे थे. इसके बाद वह 1983 से 1996 के बीच भी निर्दलीय के तौर पर पांच बार चुनाव लड़ीं. शर्ली उन चुनिंदा खिलाड़ियों में शामिल हैं जिन्होंने 2000 के सिडनी ओलिंपिक में ओलिंपिक झंड़ा पकड़ा था. साल 2001 में उन्होंने अपने सभी ओलिंपिक मेडल को ऑक्शन में बेच दिया था. इस कदम के लिए उनकी बहुत आलोचना हुई थी. इस पैसे से उन्होंने अपने पोते-पोतियो की पढ़ाई का खर्च उठाया.