आजकल के बच्चे इतने जिद्दी हो गए हैं कि क्या कहे. कहीं कोई खिलौना दिख गया वो ना दिलाया तो रोना शुरू. कहीं घूमने का प्लैन बनाया गलती से कैंसिल हो गया तो बस वहीं चीखना-चिल्लाना शुरू. ऐसे में सवाल पेरेंट्स पर उठने लगते हैं. कि उन्होंने अपने बच्चों को क्या सिखाया है. पेरेंट्स (parents) के लिए भी बच्चों की परवरिश करना आसान नहीं होता. ऐसी कंडीशन में होता ये है कि बच्चे जिद करने लगता है. उसे पूरी करवाने की कोशिश में लगा रहता है. लेकिन, वहीं कई बार पेरेंट्स भी परेशान होकर समझाने के बजाय स्ट्रिक्टनेस बरतते हैं. जो कि गलत है क्योंकि इससे बच्चा जिद्दी हो जाता है. पर चलिए परेशान मत होइए आपको एक ऐसा तरीका बता देते हैं जिससे कि ना ही पेरेंट्स को परेशान होने की जरूरत पड़ेगी ना ही बच्चे जिद करेंगे. मतलब सीधे-सीधे आपको कुछ पेरेंटिंग टिप्स बता देते हैं.
जिसमें सबसे पहले नंबर पर आता है कि बच्चों को सही गलत में फर्क समझाएं. अगर आपका बच्चा कोई गलत एक्टिविटी कर रहा है आपको पता चल जाता है. तो जरूरी है कि उसे समझाया जाए कि वो गलत कर रहा है, ना करें. ना कि उसे डांटकर उससे सही करवाया जाए. क्योंकि डांटने से हो सकता है वो एक पल के लिए मान जाए लेकिन फिर से वही गलती दोहराए.
आज के जमाने में पेरेंट्स को बच्चों की बात सुननी चाहिए. उनके थोट्स (thoughts) जानने चाहिए. ना कि उन पर अपने थोट्स का प्रेशर बनाना चाहिए. अगर आपका बच्चा आपसे कुछ कह रहा है तो उस बात को कट करने के बजाय उसके सामने ऑप्शन्स रख दें. जिससे उसकी बात भी रह जाएगी आप अपना ऑप्शन भी दे पाएंगे. बच्चे के पास भी एक काम को करने के लिए मल्टीपल ऑप्शन्स रहेंगे. साथ ही बच्चे पर कंट्रोल बनाए रखने में भी मदद मिलेगी.
बच्चों पर ज्यादा गुस्सा ना करें. समझने समझाने से हेल्दी रिलेशन बना रहता है. इसलिए बच्चों को भी बोलने का चांस दें. अगर आप उसको बोलने का मौका देंगे तो वह भी आपको अच्छी तरह से सुनेगा. आपसे बाते भी शेयर करेगा. बच्चों को हेल्दी एन्वायरनमेंट देना बेहद जरूरी होता है.
कई बार बच्चे पैरेंट्स का ध्यान अपनी ओर अट्रैक्ट के लिए भी जिद करते हैं. हो सकता है कि आपका बच्चा किसी बात से परेशान हो. उसे समझ नहीं आ रहा हो कि वो आपसे किस तरह बात करें. यहां पर बच्चों के बिहेवियर को देखते हुए उसे समझना चाहिए. उनसे शांत बैठकर बात-चीत करनी चाहिए.
ये अक्सर देखा जाता है कि अगर बच्चे को अपनी कोई बात मनवानी है तो वो आर्ग्युमेंट करने लगता है. इससे उसे लगता है कि डेफिनेटली उसकी बात सुनी जाएगी उस पर ध्यान दिया जाएगा. इसलिए, बच्चों की बात को ध्यान से सुनकर उनमें ये ट्रस्ट बिल्ड-अप कीजिए कि हां उनकी बात सुनी जाएगी उसे सीरियसली सुना जाएगा.