बात उन दिनों है कि जब राजेश खन्ना सुपरस्टार थे। उस दौरान वे फिल्म अभिनेता राजेंद्र कुमार का बंगला खरीदना चाहते थे, लेकिन राजेन्द्र कुमार इसके लिए तैयार नहीं थे।
समय करवट बदलता है और स्थितियां ऐसी बनती हैं कि राजेन्द्र कुमार को बंगला बेचने का निर्णय लेना पड़ता है। वे राजेश खन्ना को संदेश भेजते हैं और शर्त रखते हैं कि वे बंगला सात लाख रुपये में देंगे और पूरी रकम एक साथ लेंगे।
सात लाख रुपये उन दिनों बहुत बड़ी रकम होती थी। सुपरस्टार राजेश खन्ना के पास भी एकमुश्त इतना पैसा नहीं था। राजेश फैसला लेते हैं कि जो भी फिल्म निर्माता उन्हें सबसे पहले साइन करने के लिए आएगा उसकी फिल्म सात लाख रुपये में वे साइन कर लेंगे और कहानी-स्क्रिप्ट पर ध्यान भी नहीं देंगे।
अगली सुबह एक निर्माता आता है। राजेश खन्ना को कहानी सुनाता है। स्क्रिप्ट बताता है। राजेश खन्ना को जरा भी यह पसंद नहीं आती। फिर भी वे निर्माता के आगे शर्त रख देते हैं कि यदि वह सात लाख रुपये देगा तो वे फिल्म साइन कर लेंगे।
फिल्म निर्माता फौरन मान जाता है। सात लाख की रकम का तुरंत इंतजाम कर राजेश खन्ना को सौंप देता है। बदले में राजेश खन्ना उसे उसकी मनपसंद डेट्स दे देते हैं और बंगला खरीद लेते हैं।
बंगला खरीदने के बाद राजेश खन्ना स्क्रिप्ट लेकर लेखक सलीम-जावेद के घर जाते हैं। वे कहते हैं कि सिर्फ पैसों की खातिर उन्होंने एक बेहद घटिया फिल्म साइन कर ली है। अब इस स्क्रिप्ट को सुधारो।
सलीम-जावेद मान जाते हैं। स्क्रिप्ट में काफी सुधार किया जाता है। फिर फिल्म बनाई जाती है जिसका नाम है ‘हाथी मेरे साथी’। इसका निर्देशन एम.ए. थिरूमुगम करते हैं। यह फिल्म 1971 में रिलीज़ होकर ब्लॉकबस्टर साबित होती है।