Saturday, November 23, 2024
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20 की उम्र में छोड़ा भारत, पाकिस्तान में की छोटी सी नौकरी, काफी संघर्षों के बाद मेहदी हसन बने शहंशाह-ए-गजल

मेहदी हसन (Mehdi Hassan), संगीत की दुनिया का वो नाम था, जिसने न केवल पाकिस्तान में अपनी गायकी से खूब नाम कमाया, बल्कि भारत के लोगों के दिलों में भी अपनी एक खास जगह बनाई. चूंकि, यह सभी जानते हैं कि मेहदी हसन का परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी संगीत से जुड़ा रहा, इसलिए उन्हें संगीत विरासत में मिला था. कहा जाता है कि मेहदी हसन अपने परिवार की 16वीं पीढ़ी के थे, जिन्होंने अपनी गायकी से अपने परिवार ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान और भारत दोनों मुल्कों का नाम रोशन किया. भारत, इसलिए क्योंकि मेहदी हसन बटवारे से पहले यहीं पैदा हुए और जब बटवारा हुआ तो मजबूरन वह अपने परिवार के साथ पाकिस्तान में जा बसे.

18 जुलाई, 1927 को राजस्थान के लूना में जन्मे मेहदी हसन के परिवार को कलावंत घराने के नाम से जाना जाता था. उन्होंने संगीत की तालीम अपने पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा इस्माइल खान से ली. मेहदी हसन के पिता और चाचा दोनों ही ध्रुपद गायकी के उस्ताद थे. संगीत के मामले में दोनों ही बहुत कठोर थे. मेहदी हसन के पिता का मानना था कि संगीत के लिए शरीर में एक मजबूती होना बहुत जरूरी है. इससे गायक का गला पक्का होता है. साज, दम और स्टेमिना से गाना मजबूत होता है.

पहलवानों की तरह पिता कराते थे मेहदी हसन को कसरत

मेहदी हसन के पिता उनसे रोजाना 500 दंड बैठक कराया करते और दो मील की दौड़ लगवाते थे. एक बार मेहदी हसन के पिता के दोस्त ने उनसे पूछ लिया था कि तुम्हें अपने बेटे को गायक बनाना है या पहलवान. तब उन्होंने जवाब दिया था कि एक गायक भी पहलवान होता है और उसे अपने गले से बहुत कसरत करनी पड़ती है, इसलिए शरीर में ताकत होना बहुत जरूरी है. मेहदी हसन के पिता और चाचा, जब उन्हें रियाज कराते तो उनकी हर ताल और सुर पर भी बारिकी से नजर रखते. काफी रियाज करने के बाद उनका गला निखरा. जब सुर की अच्छी समझ और गला निखर गया, तब पिता और चारा उन्हें अपने साथ संगीत कार्यक्रमों में ले जाने लगे.

न चाहते हुए भी छोड़ना पड़ा भारत

यहीं से शुरू हुआ मेहदी हसन का स्टेज परफॉर्मेंसेज का सफर. मेहदी हसन जब 8 साल के थे, तब उन्होंने अपने बड़े भाई के साथ अपनी पहली परफॉर्मेंस दी थी. मेहदी हसन के जीवन में सब सही चल रहा था. परिवार अच्छा खासा कमाता था. फिर आया वो काला साल यानी 1947, जब देश दो भागों में बट गया. भारत और पाकिस्तान. राजस्थान के लूना की गलियों में अपना बचपन बिताने वाले मेहदी हसन को न चाहते हुए भी अपना घर बार छोड़ना पड़ा और वह परिवार समेत पाकिस्तान में जाकर बस गए. वह उस समय 20 साल के थे.

उनका परिवार कोई इकलौता परिवार नहीं था, जिसे अपने घर को छोड़ दूसरे मुल्क को चुनना पड़ा. इस बटवारे ने कइयों के घरों को उजाड़ा. वहीं, काफी जद्दोजहद के बाद जब मेहदी हसन का परिवार पाकिस्तान पहुंचा, तो उनकी माली हालत बहुत ही खस्ता हो चुकी थी. कलावंत घराना, जिसे अपने संगीत की बदौलत भारत में काफी लोकप्रियता मिली और काफी पैसा कमाया, उसे अब परिवार की आर्थिक हालत सुधारने के लिए अपनी बेशकीमती चीज यानी संगीत को छोड़ना पड़ा.

साइकिल की दुकान में की पहली नौकरी

घर का प्रत्येक सदस्य संगीत को छोड़ किसी न किसी पेशे में नौकरी करने लगा था. मेहदी हसन भी घर की आर्थिक स्थिति को सुधारना चाहते थे. उन्होंने पाकिस्तान में सबसे पहले नौकरी की एक साइकिल की दुकान में. यहां वह टायर्स में पंक्चर लगाने का काम किया करते थे. साइकिल के पंक्चर लगाते-लगाते वह गाड़ियों और ट्रकों तक पहुंच बना बैठे. अब उन्हें गाड़ियों और ट्रकों को भी ठीक करना आ गया था.

अपनी मेहनत के दम पर बहुत ही जल्द उन्हें उस समय की बहुत ही बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई. इस कंपनी का नाम था- गुलाम हुसैन प्राइवेट लिमिटेड. वह यहां कार और ट्रैक्टर मैकेनिक के तौर पर काम किया करते थे. ऐसा नहीं था कि मेहदी हसन एक मैकेनिक बन गए थे, तो उनके दिल और दिमाग से संगीत निकल गया. उनके मन में संगीत को लेकर वही लगन थी, जो पहले हुआ करती थी. मेहदी हसन जब अपनी गायकी को लेकर कंपनी में साथ काम करने वाले लोगों को बताते तो वह उनका मजाक उड़ाते थे. पर जब उन्होंने एक दिन मेहदी हसन को गाना गाते हुए सुना तो उनके होश उड़ गए. मानो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई.

बेस्ट मैकेनिक का अवॉर्ड से सम्मानित

मेहदी हसन की कंपनी के मालिकों और साथियों ने जब उनसे पूछा कि आप इतना अच्छा गाते हो, तो इस कंपनी में क्यों काम कर रहे हो. तब मेहदी हसन ने उनके साथ अपने परिवार की माली हालत को साझा किया. साथ ही बताया कि परिवार और उनके लिए यह नौकरी कितनी जरूरी है. अगर वह ये नौकरी जारी रख पाते हैं तो इसमें मिलने वाले पैसों से वह अपने संगीत की शिक्षा को जारी रख पाएंगे. अब मेहदी हसन को कंपनी में हर कोई पसंद करने लगा था. वह इतने लोकप्रिय हो गए थे कि कंपनी द्वारा उन्हें बेस्ट मैकेनिक के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.

हालांकि, इस नौकरी के साथ-साथ पिता और चाचा से ही उनकी संगीत की तालीम चालू थी. वह नौकरी के साथ-साथ गायकी में कुछ अच्छा करने का अवसर भी तलाश करते रहते थे. कई दिनों तक मेहनत मजदूरी करने के बाद मेहदी हसन की तलाश खत्म हुई 1954 में, जब उन्होंने रेडियो पाकिस्तान के जरिए अपने करियर का आगाज किया. इसके बाद उनकी किस्मत चमकी और उन्हें 1956 में मिली अपनी पहली फिल्म शिकार. उनके करियर का पहला गाना था- नजर मिलते ही दिल की बात का चर्चा न हो जाए. इस गाने के साथ ही पाकिस्तान में मेहदी हसन के फिल्मी करियर की शुरुआत हुई. उन्हें फैज अहमज फैज की गजल गुलो में रंग से काफी लोकप्रियता मिली. इस गजल की लोकप्रियता के बाद मेहदी हसन के करियर में कभी ब्रेक नहीं लगा.

मेहदी हसन के गले से भगवान गाता है…

उन्होंने केवल पाकिस्तानी फिल्मी सिनेमा के लिए ही नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा के लिए एक से एक बेहतरीन गजलें पेश कीं. उन्होंने सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ भी गाना गाया था. हालांकि, दोनों ने गाने की रिकॉर्डिंग अपने-अपने मुल्क में रहते हुए की. लता मंगेशकर, मेहदी हसन की बहुत बड़ी फैन हैं. सुर सम्राज्ञी, मेहदी हसन के लिए कहती हैं- वह हमेशा से मेहदी हसन के साथ काम करना चाहती थीं. उनकी यह ख्वाहिश मेहदी हसन की एल्बम सरहद के जरिए पूरी हुई. लता मंगेशकर, मेहदी हसन की गायकी से इतनी प्रभावित थीं कि उन्होंने एक बार यह तक कह दिया था कि मेहदी हसन के गले से भगवान गाता है.

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