ओलिंपिक का खेल और विवादों का पुराना नाता रहा है. कभी हिंसा तो कभी राजनीति ने इन खेलों को दागदार किया है. इसकी शुरुआत हुई थी साल 1908 के ओलिंपिक खेलों में जो लंदन में आयोजित हुए थे. इन खेलों में अमेरिका के एथलीट रोल्फ रोज (Ralph Rose) ने अपना ऐसा विरोध जताया था जिसका खामियाजा पूरे अमेरिका को भरना पड़ा. किस्से ओलिंपिक में आज हमको रोल्फ रोज की इसी बगावत की कहानी सुनाने वाले हैं.
रोल्फ रोज अमेरिका के दिग्गज एथलीट थे. उन्होंने ओलिंपिक में छह मेडल जीते थे. 1904 से 1912 के बीच उन्होंने ओलिंपिक में तीन गोल्ड, दो सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल जीता था. साल 1904 में उन्होंने शॉटपुट में गोल्ड, डिस्कस थ्रो में सिल्वर और हैमर थ्रो में ब्रॉन्ज मेडल जीता था. वहीं इसके अगले साल वह एक बार फिर शॉट में गोल्ड जीतने में कामयाब रहे. साल 1912 में स्टॉकहोम में हुए खेलों में उन्होंने टू हैंडड शॉटपुट (दो हाथ की मदद से गोला फेंकना) में गोल्ड जीता.
रोल्फ रोज ने नहीं झुकाया था झंडा
ओलिंपिक के नियमों के मुताबिक ओपनिंग सेरेमनी में हर देश अपने साथ झंडे के साथ मार्च करते हैं. 1908 से चली आ रही रीति के मुताबिक मार्च करते हुए जब किसी भी देश का दल जब स्टेडियम में उस जगह से गुजरता है जहां मेजबान देश के अधिकारी बैठे होते हैं तो वहां वह अपने देश का झंडा झुकाते हैं. केवल अमेरिका ही ऐसा देश है जो ऐसा नहीं करता. इसकी शुरुआत भी रोल्फ रोज (Raulph Rose) ने साल 1908 में की थी. उस समय रोल्फ रोज ने कहा था कि वह अमेरिका को ऐसा राजा मानते हैं जो किसी के सामने नहीं झुकता लेकिन बाद में लोगों ने इसकी कुछ और ही वजह बताई थी.
आयरलैंड का साथ देना पड़ा अमेरिका को भारी
कुछ लोगों का मानना है कि उस साल अमेरिका के एथलीट्स ने आयरलैंड का साथ देने का फैसला किया था. उस समय ब्रिटेन का आयरलैंड पर भी राज था. आयरलैंड अपनी आजादी की जंग लड़ रहा था. उन्ही का साथ देने के लिए अमेरिका ने ओपनिंग सेरेमनी में विरोध जताया था. ब्रिटेन भी कहां पीछे था. कहा जाता है कि उन्होंने कई मौकों पर अमेरिका के खिलाड़ियों के साथ चीटिंग की. अमरीकी टीम ने मेजबान देश पर आरोप लगाया कि उसके द्वारा नियुक्त जज उसका पक्ष ले रहे हैं. बाद में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने घोषणा की कि वह भविष्य में कई देशों के जजों को ओलंपिक में मौक़ा देगी.