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Sunday, September 29, 2024
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ओलिंपिक के इतिहास का सबसे लंबा रेसलिंग मैच, आधे दिन तक लड़ते रहने के बावजूद कोई नहीं जीत पाया गोल्ड

ओलिंपिक खेलों में साल दर साल कई बदलाव. बदलाव खेलों और उनके नियमों में भी हुए. आज के समय में रेसलिंग के इवेंट के समय सीमा होती है. हर राउंड को समय सीमा के आधार पर बांटा जाता है. हालांकि ओलिंपिक खेलों के शुरुआती समय में ऐसा नहीं होता था. तब रेसलिंग के मैचों में समय सीमा नहीं हुआ करती थी. यह नियम 1924 पेरिस ओलिंपिक से शुरू हुआ. आज किस्से ओलिंपिक में हम आपको उस मैच की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसने बदलाव की नींव रखी.

यह मुकाबला मार्टिन क्लेन (Martin Klein) और एलफर्ड एसिकेनिन (Alfred Asikainen) के बीच खेला गया था. मार्टिन क्लेन वैसे तो एसटोनिया के रहने वाले थे लेकिन उन्होंने ओलिंपिक में रूस की ओर से हिस्सा लिया था. वहीं बात करें तो एलफर्ड की तो वह फिनलैंड (Finland) के रहने वाले थे और उन्होंने इसी देश की ओर से 1912 स्टॉकहोम ओलिंपिक खेलों (1912 Stockholm Olympic Games)) में हिस्सा लिया था. दोनों खिलाड़ी ग्रीकोरोमन (रेसलिंग का वह प्रकार जिसमें केवल कमर के ऊपर के हिस्सा का इस्तेमाल किया जाता है) रेसलर थे.

कौन थे एलफर्ड और मार्टिन

एलफर्ड ने ओलिंपिक से एक साल पहले 1911 वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता था. यह पहली और इकलौती बार था जब एलफर्ड ने इस टूर्नामेंट में कोई मेडल जीता था. इसके बाद वह स्टॉकहोम ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लेने पहुंचे थे. हालांकि केवल ब्रॉन्ज लेकर ही वापस लौटे. मिडवेट के ऐतिहासिक मुकाबले में उन्हें हारन का सामना करना पड़ा था. अब बात इस मुकाबले के दूसरे खिलाड़ी की. मार्टिन क्लेन अपने देश के पहले ओलिंपियन थे. 17 साल की उम्र में वह सेलर बनने के लिए घर से निकल गए थे लेकिन दो साल बाद रूस अंपायर पहुंचे जहां पैसे कमाने के लिए रेसलिंग क्लब में गार्ड बन गए. यहीं पर उन्होंने रेलसिंग शुरू की.

ओलिंपिक इतिहास का सबसे लंबा रेसलिंग मैच

1912 के ओलिंपिक खेलों में सेमीफाइनल में दोनों खिलाड़ियों का आमना-सामना हुआ. उस समय रेसलिंग में समय सीमा नहीं थी. मार्टिन और एलफर्ड एक-दूसरे के खिलाफ खेलने उतरे. एक घंटे का मुकाबला हुआ फिर दोनों को ब्रेक दिया गया. किसी को उस समय उम्मीद नहीं थी कि यह मैच इतिहास का सबसे लंबा रेसलिंग मैच होने वाला है. यह मुकाबला 11 घंटे 40 मिनट चला. अंत में पिन दाव की मदद से मार्टिन ने इसे अपने नाम किया. हालांकि वह इस मैच के बाद इतना थक चुके थे कि अगले दिन फाइनल खेलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. उन्होंने नाम वापस ले लिया. उनके वॉकओवर के कारण क्लेस जॉहनासन को इवेंट का गोल्ड मेडल हासिल हुआ.

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