सनातन परंपरा में की जाने वाली पूजा में शंख का बहुत महत्व है. वैदिक साहित्य से लेकर पौराणिक कथाओं में इस शंख के बहुत सारे उदाहरण आपको मिल जाएंगे. माना जाता है कि मंगल प्रतीक माना जाने वाला यह शंख समुद्र मंथन के दौरान निकले 14 रत्नों में से एक था, इसीलिए इसे रत्न भी कहा जाता है. चूंकि समुद्र मंथन से ही माता लक्ष्मी का भी प्रादुर्भाव हुआ था, इसलिए इन्हें उनका भाई माना जाता है. शुभता और मंगल के प्रतीक शंख को कई देवी–देवताओं ने अपने हाथों में धारण कर रखा है.
भगवान विष्णु को प्रिय है शंख
भगवान विष्णु की पूजा में शंख का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है क्योंकि उन्हें शंख बहुत प्रिय है. मान्यता है कि जहां पर प्रतिदिन शंख की ध्वनि होती है, वहां पर भगवान विष्णु माता लक्ष्मी संग निवास करते हैं. महाभारत काल में जब उन्होंने कृष्ण के रूप में अवतार लिया तब उनके पास पांचजन्य नाम का शंख रहा करता था. वहीं युधिष्ठिर के पास अनंत विजय, अर्जुन के पास देवदत्त, भीम के पास पौंड्रू शंख, नकुल के पास सुघोष और सहदेव के पास मणिपुष्पक शंख था. मूल रूप से शंख दो प्रकार के होते हैं – दक्षिणावर्त और वामावर्त. आइए जानते हैं, इसके महत्व के बारे में –
दक्षिणावर्त शंख
इस प्रकार के शंख का परदा दक्षिण की ओर खुला रहता है. ऐसा शंख आसानी से नहीं मिलता है. यही कारण है कि इसका मूल्य भी अधिक होता है. मान्यता है कि दक्षिणावर्ती शंख जिसके घर में रहता है, उसके घर में सब मंगल ही मंगल होता है. ऐसे घर में माता लक्ष्मी चिरकाल तक निवास करती हैं. दक्षिणावर्त शंख की प्रतिदिन पूजा करने से दुर्भाग्य दूर होता है और सौभाग्य जागता है.
वामावर्त शंख
ऐसे शंख का आवर्त यानि कि घेरा बायीं ओर रहता है. मान्यता है कि प्रतिदिन शंख बजाने से उसकी आवाज जहां तक जाती है, वहां तक की सभी बाधाएं, दोष आदि दूर हो जाता है. शंख से निकलने वाली ध्वनि नकारात्मक उर्जा को नष्ट कर देती है.
पूजा में शंख बजाने के लाभ
- घर में सुबह–शाम शंख बजाने से भूत–प्रेत आदि बाधा दूर होती है.
- शंख में जल भर कर घर में छिड़कने से घर पवित्र रहता है और उसमें सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है.
- शंख बजाने से वाणी दोष दूर होता है और फेफड़े हमेशा मजबूत बने रहते हैं.
- शंख बजाने से सूक्ष्म जीवाणुओं व कीटाणुओं का नाश हो जाता है.
- शंख को हमेशा पूजा स्थान पर जल भर कर रखना चाहिए.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)