मणिपुर में यूं तो फुटबॉल का खेल सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है, लेकिन कुछ ऐसी जगह भी हैं जहां हॉकी को काफी पसंद किया जाता है. मणिपुर में हॉकी की लोकप्रियता तब ज्यादा बढ़ गई जब चिंग्लेनसाना सिंह (Chinglensana Singh) को भारतीय टीम में मौका मिला. उन्होंने इस मौके को जमकर भुनाया और टीम में अपनी अहम जगह बनाई. चिंग्लेनसाना के बाद मणिपुर से टीम इंडिया को कोथाजीत सिंह (Kothajit Singh) और नीलकांत शर्मा जैसे खिलाड़ी भी मिले जो इसी दिग्गज को अपना रोल मॉडल माना है.
अर्जुन अवॉर्डी चिंग्लेनसाना ने साल 2011 में डेब्यू किया था. तब से अब तक वह भारत के लिए 200 से ज्यादा मैच खेल चुके हैं. वह टीम इंडिया के उप-कप्तान का पद भी संभाल चुके हैं. वह हॉकी इंडिया लीग में भी खेल चुके हैं. वह साल 2014 एशियन गेम्स (2014 Asian Games) की गोल्ड मेडलिस्ट और 2018 एशियन गेम्स की ब्रॉन्ज मेडलिस्ट टीम का हिस्सा रहे.
बिना कोच के ही शुरू हुआ था सफर
चिंग्लेनसाना जिस गांव में रहते थे वहां हॉकी का बोलबाला था. वहां कुछ अच्छे खिलाड़ी भी थे जिन्होंने उनकी काफी मदद की थी. जिस क्लब से उन्होंने पहली बार हॉकी खेलना शुरू किया वहां कोई कोच नहीं था वह केवल सीनियर खिलाड़ियों की मदद से ही खेलते हैं. जब उन्होंने नेशनल लेवल पर खेलना शुरू किया तो उन्हें रेलवे में भी नौकरी मिल गई थी. इससे उन्हें काफी मदद मिली. पहली बार चिग्लेनसाना को साल 2011 में चैंपियंस ट्रॉफी के लिए सीनियर टीम में चुना गया था. तब वक्त पर उनका पासपोर्ट तैयार नहीं हो पाया था इसी वजह से वह नहीं जा पाए थे. हालांकि इसी साल उन्होंने साउथ अफ्रीका के चैपियंस चैलेंज में हिस्सा लेकर डेब्यू किया.
गंभीर चोट के कारण आठ महीने खेल से रहे थे दूर
साल 2017 में चिग्लेनसाना को भी गंभीर इंजरी हुई थी. उनके घुटने में काफी चोट लगी थी. इस इंजरी के कारण वह लगभग आठ महीने मैदान से दूर हो गए थे. उनका वजन भी काफी बढ़ गया था. उन्होंने इसके बावजूद खेलना जारी रखा और एफआईएच प्रो लीग में जबदस्त वापसी भी की. अपने करियर के लिए उन्होंने कई चीजों की वापसी का और पूरी तरह जंक खाना छोड़ दिया. वह किसी भी सूरत में अपना जिम शेड्यूल मिस नहीं करते.