Friday, November 8, 2024
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Doll Museum : दिल्ली के डॉल म्यूजियम के बारे में जानें सबकुछ

दिल्ली में घूमने के लिए कई सारी जगहें हैं इन्ही में से एक है अंतरराष्ट्रीय गुड़िया संग्रहालय. ये संग्रहालय बहादुर शाह जफर मार्ग पर तब से स्थित है जब पं. जवाहरलाल नेहरू हमारे प्रधानमंत्री थे. इस जगह की स्थापना मशहूर कार्टूनिस्ट के. शंकर पिल्लई ने की थी, जो गुड़ियों के संग्रहकर्ता भी थे.

अंतर्राष्ट्रीय गुड़िया संग्रहालय

1957 में एक बाल पुस्तक ट्रस्ट स्थापित करने का निर्णय लिया जो बच्चों की शिक्षा के लिए लिया गया पहला कदम था. इसके बाद, उन्हें गुड़िया इकट्ठा करने का विचार तब आया जब हंगरी के एक राजनीतिज्ञ ने उन्हें उपहार में एक गुड़िया दी. शंकर के पास विभिन्न देशों की लगभग 500 गुड़ियों का संग्रह था.

वे कभी-कभी उन्हें प्रदर्शनियों में प्रदर्शित करते थे. उन प्रदर्शनियों में से एक मे इंदिरा गांधी अपने पिता के साथ गई थी और काफी मोहित हो गई थी, इसलिए, उन्होंने के. शंकर पिल्लई के साथ मिलकर इस संग्रहालय की स्थापना की, ये आधिकारिक तौर पर 30 नवंबर 1965 को शुरू हुआ था.

संग्रह

जब ये संग्रहालय शुरू हुआ था तब इसमें 1000 गुड़िया थी. अब यहां दुनिया के लगभग 85 देशों की लगभग 6000 गुड़ियों का संग्रह है. संग्रहालय की दो प्रमुख भाग हैं. एक तरफ मध्य पूर्व, एशियाई देशों, भारत और अफ्रीका की गुड़िया प्रदर्शित है, और दूसरी ओर, यूरोपीय देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया की गुड़िया प्रदर्शित की जाती हैं.

इस संग्रहालय में मौजूद गुड़िया को डॉल्स बिएननेल में गोल्डन पीकॉक फेदर नाम प्रथम पुरस्कार भी मिला है, जो साल 1980 में क्राको, पोलैंड में आयोजित किया गया था. इसके अलावा, सबसे अधिक दर्शकों को आकर्षित करने वाली गुड़िया जापान की काबुकी और समुराई गुड़िया, ब्रिटेन की रानी संग्रह, हंगरी की मेपोल नृत्य प्रतिकृति गुड़िया, थाईलैंड की महिलाओं के ऑर्केस्ट्रा आदि हैं.

इन गुड़ियों के अलावा, संग्रहालय में 150 प्रकार की भारतीय गुड़िया हैं जो देश की संस्कृति, विरासत और कला रूपों का प्रदर्शन करती हैं. इन गुड़ियों को देश के सभी राज्यों की साड़ी, सूट और पारंपरिक ड्रेस पहनाए जाते हैं. इसके अलावा, भारत की शादी की परंपराओं को दिखाने वाले संग्रह में छोटी दूल्हे और दुल्हन की गुड़िया भी हैं. इन गुड़ियों के माध्यम से देश के बारे में समझाने की कोशिश की गई है.

इन डॉल्स को एक वर्कशॉप में बनाया गया है जो म्यूजियम से ही जुड़ी हुई है. इस कार्यशाला में बनाई जाने वाली भारतीय गुड़ियों को अक्सर विदेशों से प्राप्त उपहारों के लिए आदान-प्रदान किया जाता है या जो उन्हें इकट्ठा करना चाहते हैं उन्हें बेच दिया जाता है. इन गुड़िया को बनाने में काफी मेहनत और शोध किया गया है. इस वर्कशॉप के अलावा बीमार गुड़ियों के लिए एक क्लीनिक भी है जहां किसी भी प्रकार की क्षति होने पर गुड़ियों को भेजा जाता है.

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