“लो एंटीबॉडी का मतलब हल्का लक्षण है और शरीर में दूसरे संक्रमण से लड़ने के लिए पर्याप्त है, लेकिन इतना ज्यादा नहीं कि दूसरों की मदद की जा सके.” मिलिंद सोमन को प्लाज्मा डोनेट नहीं कर पाने का मलाल है और उन्होंने सोशल मीडिया पर दर्द बयान किया.
चिकित्सीय प्रबंधन दिशा-निर्देशों से कोविड-19 मरीजों के उपचार में प्लाज्मा थेरेपी हटाए जाने के बावजूद उसके असर पर राय बंटी हुई है, डोनेट करनेवालों की तलाश जारी है, और लोगों को ऐसा करने के लिए संक्रमण से ठीक होने के बाद प्रेरित किया जा रहा है. कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर में मामले रोजाना देश में तकलीफ देनेवाले हो रहे हैं, कोविड-19 से रिकवर मरीजों के प्लाज्मा की मांग बेतहाशा बढ़ गई है.
मिलिंद सोमन को प्लाज्मा डोनेट नहीं करने का है मलाल
लेकिन बहुत सारे लोगों में हिचकिचाहट जारी है, ये सोचते हुए कि प्लाज्मा डोनेशन उनके लिए संक्रमण का फिर खतरा पैदा कर सकता है. हालांकि, विशेषज्ञों ने इसे मिथक बताया है और कहा है कि प्लाज्मा के डोनेट करने से किसी को जीवनदान मिल सकता है.
एक्टर, मॉडल और फिटनेस के शौकीन मिलिंद सोमन ने सेल्फी शेयर करने के लिए इंस्टाग्राम का सराहा लिया, नोट के साथ अपने फैंस को अवगत कराने के लिए कि उन्होंने प्लाज्मा डोनेट करने का मन बनाया था, लेकिन असफल रहे.
इंस्टाग्राम पर सेल्फी शेयर कर जताया अपना दर्द
उन्होंने लिखा, “जंगल की तरफ वापसी! मैं प्लाज्मा डोनेट करने के लिए मुंबई गया लेकिन डोनेशन के लिए पर्याप्त एंटीबॉडीज नहीं थी.” उन्होंने आगे बताया कि हालांकि प्लाज्मा थेरेपी 100 फीसद प्रभावी साबित नहीं है, लेकिन कुछ विपल्प मददगार हो सकते हैं, इसलिए मुझे लगता है कि हमें जरूर करना चाहिए जो हम कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, “मात्रा में कम एंटीबॉडी होने का वास्तव में मतलब ये है कि मुझे हल्का लक्षण था और मेरे पास अन्य संक्रमण से लड़ने के लिए पर्याप्त एंटीबॉडीज हैं लेकिन इतने ज्यादा नहीं कि मैं दूसरे लोगों की मदद कर सकूं. इस बात से थोड़ा मुझे दुख हो रहा है.”