भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली ने गेहूं अनुसंधान परिषद इंदौर द्वारा विकसित की गई गेहूं की दो नई प्रजातियों एचआई -8823 (पूसा प्रभात) और एचआई -1636 (पूसा वकुला) को किसानों के लिए रिलीज कर दिया है. गेहूं की ये दोनों किस्में अगले साल तक किसानों के लिए उपलब्ध हो जाएंगी.
गेहूं की ये दोनों प्रजातियां उन्नत किस्म की हैं. इनके बारे में भाकृअप- गेहूं अनुसंधान केंद्र इंदौर के वैज्ञानिक एके सिंह ने बताया कि एचआई -8823 (पूसा प्रभात) कम सिंचाई वाली किस्म है. बौना कद होने के कारण ये दो से तीन सिंचाई में ही पक जाती है. सर्दियों में मावठा पड़ने पर यह अतिरिक्त पानी का फायदा उठा लेती है और ज़मीन पर गिरने से बच जाती है. जल्दी बुवाई के लिए यह किस्म उपयुक्त है. इसमें पोषक तत्वों ज़िंक, आयरन, कॉपर, विटामिन ए और प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त होने से यह पोषण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.
सूखा और गर्मी सहने में सक्षम
एचआई -8823 की खास बात यह भी है कि ये सूखा और गर्मी सहने में सक्षम हैं. इनका बालियां समय पर पक जाती है. इसकी परिपक्वता अवधि 105 से 138 दिन है. इसे दो सिंचाई के लंबे अंतराल (सवा महीने ) में पकाया जा सकता है. उत्पादन भी प्रति हेक्टेयर 40 -42 क्विंटल है. कीट और रोग नहीं लगते. दाना बड़ा और भूरा-पीला होता है. ये किस्म मप्र, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा, उदयपुर संभाग और उप्र के झांसी संभाग के लिए जारी की गई है.
एचआई -1636 (पूसा वकुला) अधिक पानी वाली किस्म
गेहूं की किस्म एचआई -1636 (पूसा वकुला) अधिक पानी वाली किस्म है जिसकी सर्दी आने पर ही बुआई करनी चाहिए. इसकी बुआई 7 नवंबर से 25 नवंबर के बीच करनी चाहिए. इस किस्म में 4-5 सिंचाई लगती है. शरबती और चंदौसी की तरह यह रोटी के लिए बढ़िया किस्म है, जो पोषक तत्वों आयरन, कॉपर, ज़िंक, प्रोटीन से भरपूर है. इसे पुरानी प्रजाति लोकवन और सोना का नया विकल्प समझा जा सकता है. यह किस्म 118 दिन में पकती है. उत्पादन 60-65 क्विंटल/हेक्टेयर है. इस किस्म की मप्र, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा, उदयपुर संभाग और उप्र के झाँसी संभाग के लिए सिफारिश की गई है.