कुदरत की बनाई इस दुनिया में कई ऐसे पेड़ पौधे है. जिनकी खूबी लोगों को हैरान को हैरान कर देती है. इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसे ही पेड़ के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे दुनिया ‘लाल सोना’ कहती है. इसकी लकड़ी का विशेष महत्व है और इसका इस्तेमाल कई चीजों में किया जाता है। लाल चंदन का वैज्ञानिक नाम Pterocarpus santalinus है.
हम बात कर रहे हैं लाल चंदन के बारे में, जिसे दुनिया रक्त चंदन के नाम से भी जाता है. यूं तो चंदन तीन तरह का होता है सफेद, रक्त यानि लाल और पीत यानि पीला चंदन. एक तरफ जहां पूजा पाठ में चंदन के इस्तेमाल का महत्व सभी जानते हैं, लेकिन भारत में उगने वाले लाल चंदन यानी रक्त चंदन की बात ही कुछ और है. रक्त चंदन में सफेद चंदन की तरह सुगंध नहीं होती है.
दुनिया में इसकी भारी मांग की वजह ये भी है कि भारत का ये ‘लाल सोना’ आयुर्वेद में औषधि के रूप में अनगिनत तरीकों से उपयोग में लाया जाता है. इसके साथ ही महंगे फर्नीचर, सजावट के काम के लिए भी रक्त चंदन की लकड़ियों की काफी डिमांड है. इसके अलावा इसका इस्तेमाल शराब और कॉस्मेटिक्स की चीजों में भी किया जाता है.
सिर्फ भारत में ही पाया जाता है ये पेड़
इस पेड़ की औसतन ऊंचाई 8 से लेकर 12 मीटर तक होती है. इसकी लकड़ी पानी में डूब जाती है. जो इसकी सबसे प्रमुख पहचान है.आपको जानकार हैरानी होगी कि सारी दुनिया में यह पेड़ केवल तमिलनाडु की सीमा से लगे आंध्र प्रदेश के चार जिलों- नेल्लोर, कुरनूल, चित्तूर, कडप्पा में फैली शेषाचलम की पहाड़ियों में ही रक्त चंदन के पेड़ उगते हैं.
इंटरनेशनल मार्केट में इसकी कीमत करोड़ों तक पहुंचती है. सड़क, जल, वायु इन तीनों मार्गों से रक्त चंदन की लकड़ियों की तस्करी की जाती है. जिसके चलते इनको निर्यात करके तस्कर एक अच्छी खासी रकम कमा लेते हैं. इन पेड़ों की सुरक्षा के लिए STF तक की तैनाती की गई है. भारत में इसकी तस्करी को रोकने के लिए कड़े कानून हैं.
चीन, जापान, सिंगापुर, यूएई, आस्ट्रेलिया सहित अन्य कई देशों में इन लकड़ियों की डिमांड है. लेकिन सबसे अधिक मांग चीन में है. स्मगलिंग भी सबसे अधिक यहीं होती है। फर्नीचर, सजावटी सामान, पारंपरिक वाद्ययंत्र के लिए मांग अधिक है.