पाकिस्तान को दो भागों में बांटने की बात साल 1965 में ही शुरू हो गई थी. नौसेना की दक्षिणी कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ वाइस एडमिरल अनिल कुमार चावला ने कहा कि भारत ने 1965 में ही पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान से अलग करने के बारे में सोचना शुरू कर दिया था, हालांकि यह वास्तव में 1971 में हुआ था. चावला ने येलहंका एयरफोर्स स्टेशन में 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की जीत की स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में ये बात कही.
उन्होंने ‘क्लासिफाइड’ डॉक्यूमेंट का हवाला देते हुए कहा कि इस बात की पुष्टि के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं कि ‘1965 के युद्ध के बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान से अलग करने पर विचार शुरू हो गया था. इसकी मुख्य वजह उत्तर-पूर्व में ISI की बढ़ती दखलअंदाजी थी, दरअसल चटगांव की पहाड़ियों में नगा विद्रोहियों को ट्रेनिंग दी जा रही थी. उस वक्त जो सबक हमें मिले, उसका इस्तेमाल हमने मुक्ति वाहिनी की ट्रेनिंग में किया.’
टूट से कमजोर हो गई थी कांग्रेस
वाइस एडमिरल अनिल कुमार चावला ने कहा कि कांग्रेस में टूट ने पार्टी को कमजोर कर दिया था, इस दौरान इंदिरा गांधी को भी प्रधानमंत्री बनने में मुश्किल हुई थी और विपक्ष को उनके लंबे समय तक सत्ता में रहने की उम्मीद नहीं थी. विपक्ष उन्हें ‘गूंगी गुड़िया’ बुलाता था. उस दौरान यानी 1969 में यहिया खान ने पाकिस्तान में टिक्का खान से सत्ता ले ली थी.
उन्होंने कहा, ‘यहिया खान ने 1954 में ‘वन यूनिट जियोपॉलिटिकल प्रोग्राम’ को भंग करके इस कहानी की शुरुआत की थी, जिसके तहत पूरे पाकिस्तान को एक विंग माना गया और 1970 में चुनावों की घोषणा की गई. 1970 के चुनाव पहले ऐसे चुनाव थे जब ‘एक व्यक्ति एक वोट’ के सिद्धांत की शुरुआत की गई थी.
इंदिरा ने तय समय से पहले ही कर दी थी चुनाव की घोषणा
वाइस एडमिरल अनिल कुमार चावला ने कहा यह बताते हुए कि पाकिस्तान में ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ के आधार पर होने वाले पहले चुनाव थे, इंदिरा गांधी ने भी फरवरी 1971 में तय समय से डेढ़ वर्ष पहले ही चुनाव की घोषणा कर दी.
उन्होंने कहा, ‘यहिया खान अपनी जगह बहुत मजबूत थे और इंदिरा गांधी कमजोर थीं. लेकिन दिसंबर 1970 में अचानक सबकुछ बदल गया, जब शेख मुजीबुर रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान में 160 सीटों पर जीत हासिल की और भुट्टो को पश्चिमी पाकिस्तान में केवल 81 सीटें मिलीं. रहमान को प्रधानमंत्री पद का स्वाभाविक उत्तराधिकारी माना जाता था.’
‘हो सकता है लाहौर में प्लेन हाईजैक भी एक ट्रिगर प्वाइंट रहा हो’
यह कहते हुए कि 1965 में विचार शुरुआती दौर में थी, चावला ने अनुमान जताया कि 30 जनवरी, 1971 को कश्मीरी अलगाववादियों द्वारा इंडियन एयरलाइंस के एक विमान को लाहौर में हाईजैक करना एक ट्रिगर प्वाइंट हो सकता है.
चावला ने कहा, ‘भारत सरकार ने ओवरफ्लाइट सुविधाओं को रोक दिया था, जिससे उन्हें पूर्वी पाकिस्तान में फिर से आने से रोका जा सके. उन्हें कोलंबो के ऊपर से उड़ान भरनी पड़ी, जो कठिन और महंगा था. साथ ही, रहमान को चुनाव में मिली जीत के बाद भी प्रधानमंत्री पद न मिलना भी इस पूरे प्लॉट को दर्शाने लगा था. इसके बाद मार्च में, जैसे ही रहमान ने स्वतंत्रता की घोषणा की, भारत ने अप्रैल 1971 में युद्ध में दखल शुरू कर दिया.’
उन्होंने कहा कि 7 मार्च को, इंदिरा गांधी ने एक शानदार एकतरफा जीत हासिल की जिससे उनकी स्थिति मजबूत हुई. इस दौरान कई चीजें घटीं और उन्हें ‘भारत की दुर्गा’ कहा जाने लगा. उन्होंने बताया कि उस दौरान 1971 के युद्ध में लड़ाई के सिद्धांत का पालन किया गया था. युद्ध अलग है और तकनीक ने सब कुछ बदलकर दिया है. हमें आगे देखने और याद रखने की जरूरत है कि विरोधी, भू-राजनीतिक स्थिति और तकनीकी तौर पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.